Hindi, asked by toppoaditi588, 29 days ago

कश्मीरी सेब का सारा‌ंश अपने शब्दों में लीखें​

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Answered by itsurheart
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पाठ का सारांश :

‘कश्मीरी सेब’ कहानी के लेखक प्रेमचंद हैं। वे इस कहानी में बाजार में खरीदारी करते समय होनेवाली धोखाधड़ी पर प्रकाश डालते हैं। प्रेमचंद बताते हैं कि आजकल शिक्षित समाज खानपान को लेकर ज्यादा ही जागरूक हो गया है। अब वह अपने भोजन में प्रोटीन और विटामिन का ध्यान रखने लगा है। टमाटर और गाजर को भोजन की मेज पर जगह मिलने लगी है। सेब भी स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण फल है। प्रेमचंद जब बाज़ार जाते हैं तो दुकानदार को आध सेर सेब देने को कहते हैं। दुकानदार आध सेर सेब प्रेमचंद को लिफाफे में भरकर एवं रूमाल में बांधकर दे देता है।

प्रेमचंद दुकानदार की बातों में आ जाते हैं और उस पर भरोसा करके सेब को नहीं देखते है। वे लिफाफे को घर लाकर रख देते हैं और सुबह जब नाश्ते के लिए एक सेब निकालते हैं तो वह गला हुआ था। तब दूसरा निकाला; वह भी आधा सड़ा था। इस प्रकार वे बाकी दो सेब भी देखते हैं। वे दोनों भी कुछ न कुछ खराब थे। प्रेमचंद को बहुत अफसोस हुआ। उन्हें दुकानदार की धोखेबाजी पर गुस्सा आया। लेकिन प्रेमचन्द इसमें खुद को भी दोष देते हैं क्योंकि उन्होंने दुकानदार पर सहज विश्वास करके रूमाल उसके हाथ में रख दिया था कि भाई अच्छे वाले सेब आध सेर दे दो। एक तरह से उसे बेईमानी का मौका उन्होंने ही दिया था।

लेखक बताते हैं कि पहले का समय ऐसा नहीं था। व्यापारियों की प्रतिष्ठा बची हुयी थी। वे आपको धोखा नहीं देते थे। प्रेमचन्द गलती से एक बार पैसे की जगह अठन्नी दे आए थे लेकिन वापस जाने पर दुकानदार ने अठन्नी लौटा दी और क्षमा भी मांगी। इस कहानी में लेखक अपने अनुभव के माध्यम से पाठकों को सावधान करते हैं कि खरीदारी करते समय अगर सावधानी नहीं रखी तो धोखा खाने की संभावना है।

Answered by sonalinalaker
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पाठ का सारांश :

‘कश्मीरी सेब’ कहानी के लेखक प्रेमचंद हैं। वे इस कहानी में बाजार में खरीदारी करते समय होनेवाली धोखाधड़ी पर प्रकाश डालते हैं। प्रेमचंद बताते हैं कि आजकल शिक्षित समाज खानपान को लेकर ज्यादा ही जागरूक हो गया है। अब वह अपने भोजन में प्रोटीन और विटामिन का ध्यान रखने लगा है। टमाटर और गाजर को भोजन की मेज पर जगह मिलने लगी है। सेब भी स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण फल है। प्रेमचंद जब बाज़ार जाते हैं तो दुकानदार को आध सेर सेब देने को कहते हैं। दुकानदार आध सेर सेब प्रेमचंद को लिफाफे में भरकर एवं रूमाल में बांधकर दे देता है।प्रेमचंद दुकानदार की बातों में आ जाते हैं और उस पर भरोसा करके सेब को नहीं देखते है। वे लिफाफे को घर लाकर रख देते हैं और सुबह जब नाश्ते के लिए एक सेब निकालते हैं तो वह गला हुआ था। तब दूसरा निकाला; वह भी आधा सड़ा था। इस प्रकार वे बाकी दो सेब भी देखते हैं। वे दोनों भी कुछ न कुछ खराब थे। प्रेमचंद को बहुत अफसोस हुआ। उन्हें दुकानदार की धोखेबाजी पर गुस्सा आया। लेकिन प्रेमचन्द इसमें खुद को भी दोष देते हैं क्योंकि उन्होंने दुकानदार पर सहज विश्वास करके रूमाल उसके हाथ में रख दिया था कि भाई अच्छे वाले सेब आध सेर दे दो। एक तरह से उसे बेईमानी का मौका उन्होंने ही दिया था।लेखक बताते हैं कि पहले का समय ऐसा नहीं था। व्यापारियों की प्रतिष्ठा बची हुयी थी। वे आपको धोखा नहीं देते थे। प्रेमचन्द गलती से एक बार पैसे की जगह अठन्नी दे आए थे लेकिन वापस जाने पर दुकानदार ने अठन्नी लौटा दी और क्षमा भी मांगी। इस कहानी में लेखक अपने अनुभव के माध्यम से पाठकों को सावधान करते हैं कि खरीदारी करते समय अगर सावधानी नहीं रखी तो धोखा खाने की संभावना है।

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