कशमीर की तातकालीन समस्या पर 100 से 200 श ब्दो मे निबंध
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ब्रिटिशकाल में जम्मू व कश्मीर एक विस्तृत देशी रियासत थी जिसकी अधिकांश जनता मुस्लिम थी और राजा हिन्दू था | आजादी के बाद भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 द्वारा देशी रियासतों को यह स्वतंत्रता प्रदान की गई थी कि वे चाहे तो भारत में मिल सकते हैं या पाकिस्तान में अथवा अपना पृथक अस्तित्व बनाये रख सकते हैं |
ब्रिटिशकाल में जम्मू व कश्मीर एक विस्तृत देशी रियासत थी जिसकी अधिकांश जनता मुस्लिम थी और राजा हिन्दू था | आजादी के बाद भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 द्वारा देशी रियासतों को यह स्वतंत्रता प्रदान की गई थी कि वे चाहे तो भारत में मिल सकते हैं या पाकिस्तान में अथवा अपना पृथक अस्तित्व बनाये रख सकते हैं |आजादी के समय जम्मू – कश्मीर रियासत के प्रमुख हरि सिंह थे | कश्मीर रियासत के अलग – अलग हिस्सों गिलगिट, बाटलिस्तान , लद्दाख, जम्मू आदि के लोगों के महत्काक्षाओं को ध्यान में रखते हुए महाराजा हरि सिंह को निर्णय लेना था लेकिन जब महाराजा हरि सिंह 15 अगस्त 1947 तक निर्णय नहीं कर सके तो लिहाजा उन्होंने दोनों मुल्कों को समझौते का प्रस्ताव भेजा | पाकिस्तान की सरकार ने इस प्रस्ताव को तत्काल मान लिया क्योंकि उसे विश्वास था कि ब्रिटेन के दबाव में आकर महाराजा हरि सिंह को पाकिस्तान में ही कश्मीर का विलय करना पड़ेगा |
ब्रिटिशकाल में जम्मू व कश्मीर एक विस्तृत देशी रियासत थी जिसकी अधिकांश जनता मुस्लिम थी और राजा हिन्दू था | आजादी के बाद भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 द्वारा देशी रियासतों को यह स्वतंत्रता प्रदान की गई थी कि वे चाहे तो भारत में मिल सकते हैं या पाकिस्तान में अथवा अपना पृथक अस्तित्व बनाये रख सकते हैं |आजादी के समय जम्मू – कश्मीर रियासत के प्रमुख हरि सिंह थे | कश्मीर रियासत के अलग – अलग हिस्सों गिलगिट, बाटलिस्तान , लद्दाख, जम्मू आदि के लोगों के महत्काक्षाओं को ध्यान में रखते हुए महाराजा हरि सिंह को निर्णय लेना था लेकिन जब महाराजा हरि सिंह 15 अगस्त 1947 तक निर्णय नहीं कर सके तो लिहाजा उन्होंने दोनों मुल्कों को समझौते का प्रस्ताव भेजा | पाकिस्तान की सरकार ने इस प्रस्ताव को तत्काल मान लिया क्योंकि उसे विश्वास था कि ब्रिटेन के दबाव में आकर महाराजा हरि सिंह को पाकिस्तान में ही कश्मीर का विलय करना पड़ेगा |दूसरी तरफ भारत ने इस प्रस्ताव को ठंडे बस्ते में यह कहकर रख दिया, की आपसी विचार – विमर्श द्वारा इस मुद्दे को सुलझाएंगे | वहीं महाराजा हरि सिंह भारत के नेतृत्व के साथ रियासत के भविष्य को लेकर लगातार विमर्श कर रहे थे | और अंत तक भारत में ही विलय के पक्षधर बने रहे |
ब्रिटिशकाल में जम्मू व कश्मीर एक विस्तृत देशी रियासत थी जिसकी अधिकांश जनता मुस्लिम थी और राजा हिन्दू था | आजादी के बाद भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 द्वारा देशी रियासतों को यह स्वतंत्रता प्रदान की गई थी कि वे चाहे तो भारत में मिल सकते हैं या पाकिस्तान में अथवा अपना पृथक अस्तित्व बनाये रख सकते हैं |आजादी के समय जम्मू – कश्मीर रियासत के प्रमुख हरि सिंह थे | कश्मीर रियासत के अलग – अलग हिस्सों गिलगिट, बाटलिस्तान , लद्दाख, जम्मू आदि के लोगों के महत्काक्षाओं को ध्यान में रखते हुए महाराजा हरि सिंह को निर्णय लेना था लेकिन जब महाराजा हरि सिंह 15 अगस्त 1947 तक निर्णय नहीं कर सके तो लिहाजा उन्होंने दोनों मुल्कों को समझौते का प्रस्ताव भेजा | पाकिस्तान की सरकार ने इस प्रस्ताव को तत्काल मान लिया क्योंकि उसे विश्वास था कि ब्रिटेन के दबाव में आकर महाराजा हरि सिंह को पाकिस्तान में ही कश्मीर का विलय करना पड़ेगा |दूसरी तरफ भारत ने इस प्रस्ताव को ठंडे बस्ते में यह कहकर रख दिया, की आपसी विचार – विमर्श द्वारा इस मुद्दे को सुलझाएंगे | वहीं महाराजा हरि सिंह भारत के नेतृत्व के साथ रियासत के भविष्य को लेकर लगातार विमर्श कर रहे थे | और अंत तक भारत में ही विलय के पक्षधर बने रहे |भारत – पाकिस्तान के विभाजन के बाद 26 अक्टूबर, 1947 को इसी बौखलाहट में पाकिस्तान के कबाइलियों ने, जो पाकिस्तान सरकार द्वारा समर्थित थे, जम्मू और कश्मीर पर आक्रमण कर दिया, फलस्वरूप हरि सिंह भारत में जम्मू – कश्मीर के विलय के अधिपत्र पर हस्ताक्षर कर ‘कश्मीर’ को भारतीय संघ में शामिल करने की औपचारिक घोषणा कर दीया | इस अधिपत्र में यह व्यवस्था की गई थी कि जम्मू – कश्मीर के संबंध में भारत सरकार को प्रतिरक्षा, विदेशी मामलों तथा संचार के सम्बन्ध में अधिकार प्राप्त होगा |
(1) कश्मीर के भारत में विलय में विलम्ब
(1) कश्मीर के भारत में विलय में विलम्बमहाराजा हरि सिंह ने कश्मीर को भारत में विलय करने का निर्णय करने के बाद भी अधिकारिकरूप से विलय करने में अत्यंत विलम्ब किया | भारत के रक्तरंजित विभाजन की विभीषिका देखने के बाद भी हरि सिंह ने 15 अगस्त, 1947 में ही ‘कश्मीर’ का भारत में विलय नहीं किया, बल्कि विलय को लटकाकर वे काफी समय तक विचार करते रहे और जब अक्टूबर 1947 में पाक सेना ने कश्मीर घाटी में रक्तपात मचाना शुरू किया, तो वे इस मामलें को लेकर गंभीर हुए और अंततोगत्वा 26 अक्टूबर, 1947 को विलय – पत्र पर हस्ताक्षर किए और भारत में कश्मीर का विलय हो हुआ, परन्तु तब तक हालात बदल चूका था |