कटी पतंग की
आत्मकथा nibandhat
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मैं पतंग हूँ। मुझे गर्व है कि आप सब मुझे मेरी सुन्दरता के लिए पसन्द करते हैं। पर वह सुन्दरता मुझे मिलने के लिए मुझे बहुत कठिनाईयों को झलेना परता है। सबसे पहले मुझे एक चमकीले कागज़ से काटा जाता है, जिसमे बहुत तकलीफ़ होती है। फ़िर बाँस की पतली डंडियों के साथ जोडा जाता है। आखिर में मुझमे धागे पिरोकर बांध दिया जाता है। बांधने के बाद मुझे एक लंबे धागे से बांध देते हैं, जैसे किसी को जंजीरों से पकरकर कैद कर दिया गया हो। जब मुझे उडाया गया तो बहुत खुशी हुई पर मैंने देखा की मैं धीरे-धीरे ऊपर जा रहा हूँ और ऊपर भी धागे से बंधा हुआ हूँ। फ़िर मैंने सोचा की अगर मुझे उडाना हीं था तो फ़िर कैद क्यों रखा?
मैंने देखा कि जो मुझे उडा रहा है वो मुझे दूसरे से लडाअ रहा है। हम ऊपर सारे पतंग-भाई एक-दूसरे से माफ़ी मांग रहे थे क्योंकि हम सब एक दूसरे को घायल कर रहे थे। ऐ इंसान, कुछ तो देखकर सीख, तू हमें लडवा रहा है, तुझे पाप लगेंगे। तब हीं दूसरा पतंग मुझमें एक बडा सा छेद दे मुझे घायल कर दिया, वह मेरी आखरी घरी थी। पर मैं खुश हूँ की मैंने किसी को खुशी दी और मरने के बाद भी मैं मिट्टी में मिलकर खाद का काम करुँगा।
ऐ खुदा, ये इंसान मुझसे कुछ सीखते क्यों नहीं मैं तो एक निर्जीव वस्तु हूँ, निर्जीव होकर भी मैं जब किसी को इतनी खुशी दे सकता हूँ, तो तू, जो की एक जीव है, सोच, सोच की तू किसी को कितनी खुशी देगा। अगर तुझे कुछ चुराना हीं है तो पैसे नहीं, किसी के आँखो से आँसू को चुरा, किसी के दिल से गम को चुरा, पर किसी को दुख मत दे। गिरते-गिरते मेरे ज़हन में वो पहले वाला सवाल आया और जब मैंने इसका जवाब सोचा तो पता चला की माँ-पिताजी हमें जन्म देते हैं, जरूरत परने पर डाँट लगाते हैं और हमें धीरे-धीरे बाहर की दुनिया दिखाते हैं, और हमें तब तक अकेला नहीं छोरते जब तक हम उस लायक नहीं हो जाते। नहीं तो हम किसी पतंग की तरह अटके हुए या फटे हुए मिलेंगे।