Hindi, asked by ayush77928, 9 months ago

कटते जंगल घटता मंगल पर निबंध with Prasthavna and there points.​

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Answered by randhirsinghrana13
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कटते जंगल घटता मंगल - निबंध

जंगलों का नियमित कटौती जलवायु, पर्यावरण, जैव विविधता, पूरे वातावरण के साथ-साथ मानव के सांस्कृतिक और शारीरिक अस्तित्व को धमकी देने पर बहुत नकारात्मक प्रभाव पैदा कर रहा है। वनों की कटाई के कई कारण हैं जैसे लकड़ी की निकासी बढ़ती मानव आबादी और लोगों के औद्योगिक हितों की वजह से

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Answered by madhukatiyar2014
4

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- श्रुति अग्रवाल

हरे-भरे खूबसूरत पेड़...जहाँ तक नजर जाएँ, वहाँ तक हरियाली ही हरियाली.....कितनी सुखद लगती हैं ये बातें, लेकिन वास्तविकता इससे बिलकुल अलग है। वर्तमान में सिर्फ ‘ एक हफ्ते में हमारी धरती पर से पांच लाख हैक्टेयर में फैला जंगल साफ कर दिया जा रहा है । ’ संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार ‘हर साल धरती पर से एक प्रतिशत जंगल का सफाया किया जा रहा है । जो पिछले दशक से पचास प्रतिशत ज्यादा है ।’

शहरीकरण के दबाव, बढ़ती जनसंख्या और तीव्र विकास की लालसा ने हमें हरियाली से वंचित कर दिया है....घर के चौबारे में आम-नीम के पेड़ होना गुजरे वक्त की बात हो गई है। छोटे से फ्लैट में बोनसाई का एक पौधा लगाकर हम हरियाली को महसूस करने का भ्रम पालने लगें हैं।

ऐसे समय में जब हमारे वैज्ञानिक हमें बार-बार ग्लोबल वार्मिंग की समस्या से चेता रहे हैं...भयावह भविष्य का चेहरा दिखा रहे हैं....यह आकड़ा दिल दहला देने के लिए काफी है। रूस, इंडोनेशिया, अफ्रीका, चीन, भारत के कई अनछुए माने जाने वाले जंगल भी कटाई का शिकार हो चुके हैं।

हरे-भरे खूबसूरत पेड़...जहाँ तक नजर जाएँ, वहाँ तक हरियाली ही हरियाली.....कितनी सुखद लगती हैं ये बातें, लेकिन वास्तविकता इससे बिलकुल अलग है। वर्तमान में सिर्फ ‘ एक हफ्ते में हमारी धरती पर से पांच लाख हैक्टेयर में फैला जंगल साफ कर दिया जा रहा है।’

ग्लोबल फारेस्ट वॉच को शुरू करने वाले डर्क ब्राएंट कहते हैं क ि ‘ सिर्फ बीस सालों के अंदर दुनिया भर के ४० प्रतिशत काट दिए जाएंगे । ’ दुनिया के सबसे बड़े जंगल के रूप में पहचाने जाने वाले ओकी-फिनोकी के जंगल भी इनसे जुदा नहीं। यहाँ के पेड़ों को भी बड़ी तेजी से काटा जा रहा है। जितनी तेजी से जंगल कट रहे हैं उतनी ही तेजी से जीव-जंतुओं की कई प्रजाती दुनियाँ से विलुप्त होती जा रही है।

जंगल की कटाई की समस्या सबसे ज्यादा तीसरी दुनियाँ के देशों में विद्यमान हैं। विकास की प्रक्रिया से जूझ रहें इन देशों ने जनसंख्या वृद्धी पर लगाम नहीं कसी है। जिसके कारण वर्षा वन जो प्रकृति की खूबसूरत देन हैं तेजी से काटे जा रहे हैं। जंगलों के कटने एक तरफ वातावरण में कार्बन डाई आक्साइट बढ़ रही हैं वहीं दूसरी ओर मिट्टी का कटाव भी तेजी से हो रहा है।

भारतीय परिपेक्षय में बात करें तो तीसरी दुनियाँ से पहली दुनियाँ के देशों में शुमार होने को ललायित हमारे देश में जगंलों को तेजी से काटा जा रहा है। हिमालय पर्वत पर हो रही तेजी से कटाई के कारण भू-क्षरण तेजी से हो रहा है। एक रिसर्च के मुताबिक हिमालयी क्षेत्र में भूक्षरण की दर प्रतिवर्ष सात मिमी. तक पहुंच गई है। नतीजा कई बार ५०० से १००० प्रतिशत तक गाद घाटियों और झीलों में भर जाती है। जिसके कारण नदियों में जलभराव कम हो रहा है। भारत की जीवनरेखा कहीं जाने वाली कई नदियाँ गर्मियों में सूख जाती हैं। वहीं बारिश में इनमें बाढ़ आ जाती है। हिमाचल और काशमीर में हाल ही के सालों में हुई तबाही का मुख्य कारण यहाँ के जगंलों की हो रही अंधाधुन कटाई ही है।

वनों की बेरहमी से हो रही कटाई के कारण एक तरफ ग्लोबल वार्मिंग बढ़ रही है वहीं दूसरी और प्रकृति का संतुलन बिगड़ रहा है। कई जीव हमारी धरती से लुप्त हो चुके हैं.....सही तरह से आँका जाए तो प्रलय का वक्त नजदीक नजर आ रहा है। इस प्रलय से बचने के लिए हमें तेजी से प्रयास करने होंगे।

अब हर व्यक्ति को एक दो नहीं कम से कम दस पेड़ लगाने का वादा नहीं बल्कि पक्का इरादा करना होगा। चिपको आंदोलन को दिल से अपनाना होगा। तभी हम वक्त से पहले आने वाली इस प्रलय से बच सकते हैं

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