कटते वृक्ष सिकुड़ते वन विषय पर महेश और रमेश के मध्य वार्तालाप को संवाद रूप में प्रस्तुत करें।
Please someone answer it
Answers
(संवाद लेखन)
कटते वृक्ष सिकुड़ते वन विषय पर महेश और रमेश के मध्य वार्तालाप
महेश — रमेश आज बहुत गर्मी है।
रमेश — हाँ यार, अभी बारिश होने का मौसम है लेकिन बारिश का नामोनिशान ही नही है।
महेश — मैं रोज समाचारों में सुनता हूँ कि कितनी जगह बाढ़ ने तबाही मचाई हुई है और कई जगह सूखा पड़ा हुआ है।
रमेश — मानव ने पर्यावरण के साथ जो खिलवाड़ शुरु किया था उसके दुष्परिणाम अब सामने आने लगे हैं।
महेश — तुम सही कह रहे हो। हरियाली दिन-ब-दिन कम होती जा रही है। वृक्षों की अंधाधुंध कटाई निरंतर जारी है। वन घटते ही जा रहे हैं।
रमेश — और लोग फिर भी आंख मूंदकर बैठे हैं। लोगों की समझ में नहीं आ रहा कि वृक्ष ही प्रकृति का सार हैं हम वृक्षों को बचाएंगे तो हमारी पृथ्वी भी सुरक्षित रहेगी। वन भूमि के कटाव को रोकते हैं जिससे बाढ़ आने की संभावना कम होती है।
महेश — हाँ, वृक्ष ही पर्यावरण में संतुलन बनाये रखते हैं जिससे सर्दी, गर्मी, वर्षा आदि ऋतुओं में संतुलन स्थापित होता है, लेकिन वृक्षों की कमी के कारण इन प्राकृतिक क्रियाओं में असुंतलन पैदा हो गया है इसलिये कहीं अत्याधिक गर्मी पड़ रही है तो कहीं अत्याधिक सर्दी पड़ रही है। कहीं बहुत अधिक वर्षा हो रही तो कहीं सूखा पड़ा हुआ है।
रमेश — हम और तुम आज से संकल्प लेते हैं कि महीने में कम से कम पांच वृक्ष लगायेंगे और उनकी देखभाल करेंगे। अन्य लोगों को भी प्रेरित करेंगे कि पांच न सही कम से कम महीने में एक वृक्ष तो लगायें और भली-भांति उसकी देखभाल करें।
महेश — तुम्हारा आयडिया बहुत अच्छा है। और कोई करे न करे, हम तो अपना यथासंभव योगदान अपने पर्यावरण को बचाने में दे ही सकते हैं।
रमेश — हमारा आज से ये नारा रहेगा “वृक्ष लगाओ, पृथ्वी बचाओ”।
महेश — बहुत खूब..“वृक्ष लगाओ, पृथ्वी बचाओ”।