कदी और कोकिला - 1857 के पांच क्रांतिकारियों के बारे में परियोजन
Answers
Explanation:
बेग़म हज़रत महल, साभार: यूट्यूब
7 अप्रैल, को बेग़म हज़रत महल की पुण्यतिथि थी. इतिहास में हज़रत महल का नाम 1857 के भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम में असीम शौर्य और साहस के साथ अंग्रेज़ों से टक्कर लेने के लिए दर्ज है. बेग़म हज़रत महल को याद करते हुए हमें उन दूसरी स्त्रियों को भी याद करना चाहिए जिन्होंने 1857 के संग्राम में अपनी जान की क़ुर्बानियां दीं, मगर इनमें से ज़्यादातर को न तो कोई जानता है, न जिनका कहीं ज़िक्र किया जाता है.
झांसी की रानी
लक्ष्मीबाई का जन्म वाराणसी के एक पुरोहित के घर में हुआ था. बचपन में उनका नाम मणिकर्णिका रखा गया था. मई, 1842 में झांसी के महाराज गंगाधर राव के साथ विवाह के बाद उनका नाम बदल कर लक्ष्मीबाई कर दिया गया. 1853 में उनके पति की मृत्यु के बाद अंग्रेज़ों ने डलहौजी की कुख्यात हड़प नीति (डॉक्ट्रिन ऑफ लैप्स) के सहारे झांसी का विलय कर लिया. अंग्रेज़ों ने लक्ष्मीबाई के गोद लिए बेटे दामोदर राव को गद्दी का उत्तराधिकारी मानने से इनकार कर दिया.
झलकारी बाई और झांसी का दुर्गा दल
झलकारी बाई झांसी के दुर्गा दल या महिला दस्ते की सदस्य थीं. उनके पति झांसी की सेना में सैनिक थे. ख़ुद झलकारी तीरंदाज़ी और तलवारबाज़ी में प्रशिक्षित थीं. लक्ष्मीबाई से उनकी समानता का इस्तेमाल झांसी की सेना को अंग्रेज़ी को चकमा देने के लिए एक सैन्य रणनीति बनाने में किया. अंग्रेज़ों को धोख़ा देने के लिए झलकारी बाई ने अपनी रानी की तरह पोशाक पहने और झांसी की सेना की सेनापति बन गईं.
ऊदा देवी, एक अच्छी निशानेबाज़ और वीरांगना
लखनऊ में हुई सबसे भीषण लड़ाइयों में से एक नवंबर, 1857 में सिकंदर बाग़ में हुर्ह थी. सिकंदर बाग़ में विद्रोहियों ने डेरा डाल रखा था. यह बाग़ रेजिडेंसी में फ़ंसे हुए यूरोपियनों को बचाने निकले कमांडर कोलिन कैंपबेल के रास्ते में पड़ता था. यहां एक ख़ूनी लड़ाई हुई जिसमें हज़ारों भारतीय सैनिक शहीद हुए.
एक कथा के मुताबिक़ अंग्रेज़ों को आवाज़ से यह पता चला कि कोई पेड़ पर चढ़कर धड़ाधड़ गोलियां दाग रहा है. जब उन्होंने पेड़ को काट कर गिराया तब जाकर उन्हें पता चला कि फायरिंग करने वाला कोई आदमी नहीं बल्कि एक औरत है, जिसकी पहचान बाद में ऊदा देवी के तौर पर की गयी. ऊदा देवी पासी समुदाय से ताल्लुक रखती थीं. उनकी मूर्ति आज लखनऊ के सिकंदर बाग़ के बाहर स्थित चौक की शोभा बढ़ा रही है.
अज़ीज़न बाई
संभवतः सबसे ज़्यादा दिलचस्प कहानियां कानपुर की तवायफ़ अज़ीज़न बाई की हैं. कानपुर नाना साहेब और तात्या टोपे की सेना का अंग्रेज़ी सेना के साथ भीषण लड़ाई का गवाह बना.