Hindi, asked by AyanDutta2008, 5 months ago

कथकली इति नृत्यं केरलप्रदेशस्य अस्ति। का हिंदी अनुवाद लिखें।

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Answered by riddhisiddhicostars
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Answer:

In Hindi :- कथकली केरल राज्य का नृत्य हैं।

In English :- Kathakali dance is from kerala state.

Answered by Dikshant21024
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Answer:

Answer:   कथकली मालाबार, कोचीन और त्रावणकोर के आस पास प्रचलित नृत्य शैली है। केरल की सुप्रसिद्ध शास्त्रीय रंगकला है कथकली। 17 वीं शताब्दी में कोट्टारक्करा तंपुरान (राजा) ने जिस रामनाट्टम का आविष्कार किया था उसी का विकसित रूप है कथकली। यह रंगकला नृत्यनाट्य कला का सुंदरतम रूप है। भारतीय अभिनय कला की नृत्य नामक रंगकला के अंतर्गत कथकली की गणना होती है। रंगीन वेशभूषा पहने कलाकार गायकों द्वारा गाये जानेवाले कथा संदर्भों का हस्तमुद्राओं एवं नृत्य-नाट्यों द्वारा अभिनय प्रस्तुत करते हैं। इसमें कलाकार स्वयं न तो संवाद बोलता है और न ही गीत गाता है। कथकली के साहित्यिक रूप को 'आट्टक्कथा' कहते हैं। गायक गण वाद्यों के वादन के साथ आट्टक्कथाएँ गाते हैं। कलाकार उन पर अभिनय करके दिखाते हैं। कथा का विषय भारतीय पुराणों और इतिहासों से लिया जाता है। आधुनिक काल

 

रंगमंच

कथकली का रंगमंच ज़मीन से ऊपर उठा हुआ एक चौकोर तख्त होता है। इसे 'रंगवेदी' या 'कलियरंगु' कहते हैं। कथकली की प्रस्तुति रात में होने के कारण प्रकाश के लिए भद्रदीप (आट्टविळक्कु) जलाया जाता है। कथकली के प्रारंभ में कतिपय आचार - अनुष्ठान किये जाते हैं। वे हैं - केलिकोट्टु, अरंगुकेलि, तोडयम्, वंदनश्लोक, पुरप्पाड, मंजुतल (मेलप्पदम)। मंजुतर के पश्चात् नाट्य प्रस्तुति होती है और पद्य पढकर कथा का अभिनय किया जाता है। धनाशि नाम के अनुष्ठान के साथ कथकली का समापन होता है।

वेशभूषा

कथकली

कथकली में हर पात्र की अपनी अलग वेशभूषा नहीं होती है। कथा चरित्र को आधार बनाकर कथापात्रों को भिन्न-भिन्न प्रतिरूपों में बाँटा गया है। प्रत्येक प्रतिरूप की अपनी वेश-भूषा और साज शृंगार होता है। इस वेश-भूषा के आधार पर पात्रों को पहचानना पड़ता है। वेश - भूषा और साज - शृंगार रंगीन तथा आकर्षक होते हैं। ये प्रतिरूप पाँच में विभक्त हैं, - पच्चा (हरा), कत्ति (छुरि), करि (काला), दाढी और मिनुक्कु (मुलायम, मृदुल या शोभायुक्त)। कथकली में प्रयुक्त वेश-भूषा और साज - सज्जा भी अद्भुत होती है।

कथकली का इतिहास केरल के राजाओं के इतिहास के साथ जुडा है। आज जो कथकली का रूप मिलता है वह प्राचीनतम रूप का परिष्कृत रूप है। वेष, अभिनय आदि में हुए परिवर्तनों को 'संप्रदाय' कहते हैं। कथकली की शैली में जो छोटे - छोटे भेद हुए हैं उन्हें 'चिट्टकल' कहते हैं।

साहित्य, अभिनय और वेष के अतिरिक्त प्रमुख तत्त्व हैं 'संगीत' और 'मेलम'। भारतीय क्लासिकल परिकल्पना के अनुसार नवरसों की नाट्य प्रस्तुति कथकली में प्रमुखता पाती है। कथकली के इतिहास में अनेक प्रतिभावान कलाकार हैं। ये कलाकार नाट्य, गायन, वादन आदि सभी क्षेत्रों में प्रसिद्ध हुए हैं। केरल के विभिन्न मंदिरों में कार्यरत कथकली संघ (कलियोगम), कथकली क्लब और सभी ने मिलकर कथकली को जीवंत रखा हुआ है। कथकली के विकास के लिए महाकवि वल्लत्तोल नारायण मेनन द्वारा स्थापित 'केरल कलामण्डलम' और अनेक प्रशिक्षण केन्द्र कथकली का प्रशिक्षण देते हैं।

इतिहास

कथकली का प्रादुर्भाव 17 वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में हुआ था। विद्वानों का मत है कि कोट्टारक्करा तंपुरान द्वारा रचे गये 'रामनाट्टम' का विकसित रूप ही कथकली है। कालान्तर में अनेक नाट्य कलाओं के संयोग और प्रभाव से कथकली का स्वरूप संवरता गया।

समय के अनुसार कथकली की वेशभूषा, संगीत, वादन, अभिनय-रीति, अनुष्ठान आदि सभी क्षेत्र परिवर्तित हुए हैं। राजमहलों तथा ब्राह्मणों के संरक्षण में कथा की नृत्य नाट्य कला विकास के सोपानों पर चढता रहा। इसीलिए इसमें अनेक अनुष्ठानपरक क्रियाओं का प्रवेश हो गया।

सामान्यतः यह विश्वास किया जाता है कि कोट्टारक्करा तंपुरान (राजा) के द्वारा कथकली का जो बीजारोपण हुआ था, यही नहीं इसे सर्वांगपूर्ण तथा सर्वसुलभ कला बनाने का कार्य कोट्टयम तंपुरान ने ही किया था। रामनाट्टम की अभिनय रीति, वेश-भूषा तथा वादन संप्रदाय को पहले-पहल परिष्कृत करने वाले वेट्टत्तु राजा थे। यह 'वेट्टत्तु संप्रदाय' नाम से प्रख्यात हुआ। कोट्टयम तंपुरान (18 वीं शती) ने चार प्रसिद्ध आट्टक्कथाओं की रचना की और कथकली के अभिनय में नाट्यशास्त्र के आधार पर परिवर्तन किया। इसके लिए तंपुरान (राजा) वेल्लाट्टु ने चात्तु पणिक्कर को आमंत्रित किया जो मट्टांचेरी कोविलकम (राजमहल) में रामनाट्टम की शिक्षा दे रहे थे। चात्तु पणिक्कर की 'कळरि' (कला पाठशाला) पालक्काड जिले के कल्लडिक्कोड नामक स्थान में स्थित थी। उन्होंने वेट्टत्तु संप्रदाय का परिष्कार किया। पहले यह रीति 'कल्लडिक्कोडन संप्रदाय' नाम से जानी जाती थी। 1890 के बाद यह संप्रदाय सर्व प्रचलित हो गया।

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