कठपुतली पराधीन के है
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question to sahi se diya kro bhai
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दूसरों के वश में रहना यानीऽपराधीनता कठपुतली की नियति है। उसे दूसरा ही संचालित करता है। कठपुतली में प्राण यानी चेतना नहीं होती इसलिए पराधीनता के कारण न तो उसे पीड़ा होती है, न ही वह मुक्त होना चाहती है। लेकिन मनुष्य सदैव स्वतंत्र रहना चाहता है, यह उसका स्वभाव है।
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