कवि बचपन की वैसा मानता है
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कवि का मानना है कि बचपन भोलेपन का ही दूसरा नाम है। जब भोलापन चला जाता है तो बचपन भी चला जाता है। अपने बचपन को भोलेपन की स्थिति में वह मानता था कि वयस्क लोग अपनी कथनी के प्रति सच्चे होते हैं। बाद में उसने जाना कि उसकी मान्यता गलत थी।
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कवि का मानना है कि बचपन भोलेपन का ही दूसरा नाम है। जब भोलापन चला जाता है तो बचपन भी चला जाता है। अपने बचपन को भोलेपन की स्थिति में वह मानता था कि वयस्क लोग अपनी कथनी के प्रति सच्चे होते हैं। बाद में उसने जाना कि उसकी मान्यता गलत थी।
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