Hindi, asked by gouravsingh01022003, 7 months ago

कवि जयशंकर प्रसाद का साहित्यिक परिचय दीजिए।​

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Answered by SƬᏗᏒᏇᏗƦƦᎥᎧƦ
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बचपन से ही इन्हें कविता के प्रति गहरा अनुराग था । प्रारंभ में इन्होंने, ब्रज भाषा में खड़ी बोली को अपनाया ।

प्रसाद जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे । कविता के अतिरिक्त इन्होंने नाटक, उपन्यास, कहानियां भी लिखी है ।

नाटक : ' अजातशत्रु ', ' चन्द्रगुप्त ' व ' धुवस्वामिनी ' ।

उपन्यास : ' कंकाल ' , व ' तितली ' ।

निबन्ध : ' काव्य व कला ' ।

काव्य : ' कामायनी ', ' आंसू ' , ' लहर ' , झरना ' ।

कहानी संग्रह : ' आकाशदीप ', ' ' इंद्रजाल ' , 'आंधी और छाया ' ।

प्रसाद जी की रचनाएं में भारतीय संस्कृति के प्रति अनुराग, देश प्रेम की भावना कुट - कूटकर भारी है।

Answered by s1274himendu3564
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कवि जयशंकर प्रसाद का साहित्यिक परिचय दीजिए।

जयशंकर प्रसाद (३० जनवरी १८९० - १५ नवंबर १९३७)[1][2], हिन्दी कवि, नाटककार, कहानीकार, उपन्यासकार तथा निबन्ध-लेखक थे। वे हिन्दी के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक हैं। उन्होंने हिन्दी काव्य में एक तरह से छायावाद की स्थापना की जिसके द्वारा खड़ीबोली के काव्य में न केवल कमनीय माधुर्य की रससिद्ध धारा प्रवाहित हुई, बल्कि जीवन के सूक्ष्म एवं व्यापक आयामों के चित्रण की शक्ति भी संचित हुई और कामायनी तक पहुँचकर वह काव्य प्रेरक शक्तिकाव्य के रूप में भी प्रतिष्ठित हो गया। बाद के, प्रगतिशील एवं नयी कविता दोनों धाराओं के, प्रमुख आलोचकों ने उसकी इस शक्तिमत्ता को स्वीकृति दी। इसका एक अतिरिक्त प्रभाव यह भी हुआ कि 'खड़ीबोली' हिन्दी काव्य की निर्विवाद सिद्ध भाषा बन गयी।

जयशंकर प्रसाद:-

  • जन्म - 30 जनवरी 1890 (वाराणसीउत्तर प्रदेश, भारत)
  • मृत्यु - नवम्बर 15, 1937 (उम्र 47) (वाराणसी, भारत)
  • व्यवसाय - कवि, नाटककार, कहानीकार, उपन्यासकार

आधुनिक हिन्दी साहित्य के इतिहास में इनके कृतित्व का गौरव अक्षुण्ण है। वे एक युगप्रवर्तक लेखक थे जिन्होंने एक ही साथ कविता, नाटक, कहानी और उपन्यास के क्षेत्र में हिन्दी को गौरवान्वित होने योग्य कृतियाँ दीं। कवि के रूप में वे निराला, पन्त, महादेवी के साथ छायावाद के प्रमुख स्तम्भ के रूप में प्रतिष्ठित हुए हैं; नाटक लेखन में भारतेन्दु के बाद वे एक अलग धारा बहाने वाले युगप्रवर्तक नाटककार रहे जिनके नाटक आज भी पाठक न केवल चाव से पढ़ते हैं, बल्कि उनकी अर्थगर्भिता तथा रंगमंचीय प्रासंगिकता भी दिनानुदिन बढ़ती ही गयी है। इस दृष्टि से उनकी महत्ता पहचानने एवं स्थापित करने में वीरेन्द्र नारायण, शांता गाँधी, सत्येन्द्र तनेजा एवं अब कई दृष्टियों से सबसे बढ़कर महेश आनन्द का प्रशंसनीय ऐतिहासिक योगदान रहा है। इसके अलावा कहानी और उपन्यास के क्षेत्र में भी उन्होंने कई यादगार कृतियाँ दीं। भारतीय दृष्टि तथा हिन्दी के विन्यास के अनुरूप गम्भीर निबन्ध-लेखक के रूप में वे प्रसिद्ध रहे हैं। उन्होंने अपनी विविध रचनाओं के माध्यम से मानवीय करुणा और भारतीय मनीषा के अनेकानेक गौरवपूर्ण पक्षों का उद्घाटन कलात्मक रूप में किया है।

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