कवि का आत्म प्रलय कब होता है
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सागर में ज्वार चौदनी उठाती है और इसे देखकर कवि को ईश्वर की याद आती है। और दिशा-दिशा धुल जाती है जब ओस रूप में हरी घास, चमकीले मोतीपाती है.... हे जग के सिरजनहार प्रभो तब याद तुम्हारी आती है ।
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