कवि के अनुसार नरक कुंड का आशय क्या है?
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एक बार वह भक्ति के सच्चे मार्ग पर चल पड़े, तब इनकी माया उसे नहीं सताएगी क्योंकि तब तक भक्त अपने ईश में विलीन हो चुका होगा। जा देणे घिण उपजै नरक कुंड है वास। ... ईश्वर-भक्ति के बल पर समाज के लिए आदर्श बनकर प्रकट हुए। कवि के कहने का यही तात्पर्य है कि - "जाति-पाँति पूछे नहिं कोई, हरि को भजै सो हरि का होई।"
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