कवि किस पर क्या उड़ेलता है, जो पुनः भर-भर आता है ?
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अपने भितर प्रिय के लिए समाए हुए स्नेह रूपी जल को
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कवि किस पर क्या उड़ेलता है, जो पुनः भर-भर आता है ?
✎... कवि दिल से अपने प्रिय पर स्नेह रूपी जल को बार-बार उड़ेलता है, जो पुनः भर-भर आता है। कवि अपने दिल स्नेह रूपी जल को मीठे पानी के सोते को इसका स्रोत मानता है।
कवि कहता है कि...
जाने क्या रिश्ता है, जाने क्या नाता है
जितना भी उँडेलता हूँ, भर-भर फिर आता है
दिल में क्या झरना है?
मीठे पानी का सोता है
भीतर वह, ऊपर तुम
मुसकाता चाँद ज्यों धरती पर रात-भर
मुझ पर त्यों तुम्हारा ही खिलता वह चेहरा है!
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