कवि की उरझन क्मा हैं ?
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कवि की उलझन यह है कि माँ की तुलना करने पर कोई उसके समान नहीं है। संसार में कोई इसके समान नहीं है।
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maa k liye toh jitne shabd bolo utne hi km hain....
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