कवि कविता लिखते की और पते की
कविता में बदलिए
है
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खुद को कवि कहता हूँ
इसलिए कविता लिखता हूँ
किसी एक पर ही नहीं
हर किसी पर लिखता हूँ
उन बच्चों पर भी लिखता हूँ
जो पढ़ ना सके गरीबी की मार से
उन बच्चियों पर भी लिखता हूँ
जो शिकार हो जाती हैं
वहिशी दरिन्दों के शिकार की।
कुछ दे नहीं सकता किसी को
क्योंकि हमें कुछ मिला नहीं
कभी दुवा किया नहीं खुद के लिए
पर सबके लिए दुवा करता हूँ
कभी देखो पढ करके तुम भी
कैसा लिखता हूँ, क्या लिखता हूँ
माना कि छोटा हूँ, अभी मैं
पर हो सकता है बड़ी-बड़ी बातें
सबके जैसा मैं भी लिखता हूँ।
पढ़कर तुम सब यही कहोगे
पता नहीं था ये ऐसा लिखता है
क्योंकि मैं जनता के लिए लिखता हूँ
ऐसा है, वैसा है, ये कमी है, वो कमी है
जैसा मैं देखता-पढ़ता-सुनता हूँ
मैं भी वैसा ही लिखता हूँ
पर मैं जो भी लिखता हूँ
सब पूरी ईमानदारी से सही लिखता हूँ।
गणतन्त्र दिवस पर लिखता हूँ
स्वतन्त्रता दिवस पर लिखता हूँ
गाँधी जयन्ती पर लिखता हूँ
जितने भी दिवस हैं
मैं सब पर लिखता हूँ
पर यहाँ मैं सब झूठा लिखता हूँ
नहीं जानता धैर्य और धीरज
मेरा जब भी मन कर देता है
तब मैं विद्रोही बनकर लिखता हूँ।
हर क्षण, हर पल पर लिखता हूँ
आय नहीं कुछ भी मेरा
फिर भी मैं कविता लिखता हूँ
मैं उन पर भी लिखता हूँ
जो रहते हैं गाँवों में
उन पर भी लिखता हूँ
जो रहते हैं शहरों में
शायद मैं क्रेजी हूँ
यह समझे हर कोई
क्योंकि ऐसा जो होता है
जग उस पर हँसता है
मैं ही कविता हूँ, कविता ही मैं हूँ
यह तुम तब समझोगे
अगर पढ़ोगे कविता हमारी
तब जानोगे यह बात
कि मैं क्यूँ कविता लिखता हूँ।
शायद मैं कुछ बदलने के फिराक में हूँ
क्योंकी इसकी जरूरत है
पर ये तभी हो सकता है
जब आप सभी का साथ मिलेगा
बस बात यही पहुँचाने के लिए
मैं कविता लिखता हूँ।
जरूरत है अब सबको जागने की
कोई एक मालिक नहीं इस देश का
इस देश का मालिक सारी जनता है
चाहते हो अगर विकास सही में
तो ख़ुद को शिक्षित करो
साथ में सबको महत्त्व बताओ शिक्षा की
नहीं आती इंगलिश
तो कोई बात नहीं
इस देश में अभी भी
शिक्षा हिन्दी में मिलती है
पढ़ो इस कवि की कविता
फिर देखो
क्या प्रभाव पड़ता है तुम लोगों पर
इसलिए जब तुम काम करते हो
तब मैं तुम्हारे विकास से लिए
सोच-सोच कर कविता लिखता हूँ।