कवि मैथिलीशरण गुप्त जी की जीवनी लिखिए।
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जीवन परिचय मैथिलीशरण गुप्त का जन्म ३ अगस्त १८८६ में पिता सेठ रामचरण कनकने और माता काशी बाई की तीसरी संतान के रूप में उत्तर प्रदेश में झांसी के पास चिरगांव में हुआ। माता और पिता दोनों ही वैष्णव थे। विद्यालय में खेलकूद में अधिक ध्यान देने के कारण पढ़ाई अधूरी ही रह गयी।
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जन्म Birth
मैथिलीशरण गुप्त जी का जन्म उत्तर प्रदेश के झाँसी के चिरगावं में 3 अगस्त, सन 1866 ई० में हुआ था। इनके पिता सेठ राम चरण जी एक अच्छे कवि और वैष्णव धर्म को मानने वाले और भगवद भक्त भी थे। अपने पिता से प्रेरित हो कर मैथिलीशरण गुप्त जी अपने बाल्यावस्था से ही काव्य में रूचि लेने लगे थे। इनकी माता का नाम कौशिल्या बाई था, वो भी वैष्णव धर्म को मानने वाली थी।
शिक्षा Education
मैथिलीशरण गुप्त जी की प्रारंभिक पढाई गावं में ही शुरू हुई। तीसरे दर्जे तक इन्होने गावं में ही पढाई की और फिर आगे की पढाई करने के लिए इन्होने झाँसी के मेक्डोनल हाई स्कूल में दाखिला लिया।
लेकिन इनकी पढाई में इतनी रूचि नही थी, जिसके कारण ये हमेशा अपने दोस्तों के साथ में घुमा करते थे। मैथिलीशरण गुप्त जी हमेशा अपने कुछ मित्रो की मण्डली बना कर लोक-कला, लोकनाटक, लोकसंगीत किया करते थे।
घर वाले जब इनके पढाई ना करने से तंग आ गए तो इनको घर वापस बुला लिया। घर वालो के पूछने पर इनका केवल एक ही जवाब होता था जोकि सब को हैरान कर देता था। इनसे पूछने पर ये जवाब देते थे कि “मैं दुसरो की किताब क्यों पढू?
मैं किताब लिखूंगा तब दुसरे लोग पढ़ेगें”। ये जवाब सुनकर हर कोई हैरान हो जाता था। लेकिन बाद में यही बात सत्य हुई। जब ये बड़े हुए तो इनकी कविता के प्रसिद्ध होने के कारण इनको राष्ट्रकवि की उपाधि भी मिली।
लेखन कार्य का सफ़र Writing Work
पढाई छुटने से इनका पढाई अधूरी रह गई, जिससे इन्होने घर पर ही हिंदी, बांगला, हिंदी साहित्य का अध्ययन के साथ-साथ धर्म ग्रन्थ श्रीमद्भागवत गीता, रामायण का अध्यन किया और महाभारत घर में ना होने से इन्होने बाहर से महाभारत लाकर उसको पढ़ा।
इसके बाद 12 वर्ष की बाल्यावस्था में ही इन्होने मुंशी अजमेरी के मार्गदर्शन से ब्रजभाषा में कविता लिखने आरम्भ किया। मैथिलीशरण गुप्त जी की मुलाकात आचार्य महावीर द्वि वेदी से हुई और इनके कहने पर द्विवेदी जी ने इनकी कविताएँ सरस्वती पत्रिका में प्रकाशित करना शुरू किया।
इनकी पहली काव्य संग्रह “रंग में भेद” और उसके बाद दूसरी “जयद्रथ वध” भी प्रकाशित हुई। मैथिलीशरण गुप्त जी ने बंगाली काव्यग्रंथ “मेघनाथ वध” का अनुवाद ब्रज में किया। मैथिलीशरण गुप्त जी सन 1912 में सेनानी संग्राम से प्रेरित होकर राष्ट्रीय भावना से इन्होने “भारत भारती” लिखा और उसका प्रकाशन हुआ।