कवि ने छुटपन में पैसे क्या सोचकर बोए?
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मैंने छुटपन में छिपकर पैसे बोये थे, सोचा था, पैसों के प्यारे पेड़ उगेंगे : सुमित्रानंदन पंत
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☀ उत्तर :
- एक बार कवि ने अपनी बालयवस्था में पृथ्वी में कुछ पैसे इस आशय से बोया था कि उनमें से रुपयों के फल लगेगें। उनका विचार था कि जिस प्रकार अन्न की खेती होती है ,उस प्रकार पैसों की भी खेती की जा सकती है। किन्तु पैसों के पेड़ नहीं उगे और उनकी आशा पूर्ण न हो सकीय। कुछ समय बाद अपने आँगन में सेम के कुछ बीज बोये।
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