कवि ने जगत को तपोवन-सा क्यों कहा है?
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तपोवन का अर्थ है, जहाँ तप किया जाता है | वहां आपसी प्रेमभाव और मित्रता का वातावरण रहता है। तपोवन में कोई किसी का बैरी नहीं होता और वहाँ किसी की किसी के साथ शत्रुता नहीं होती है | कवि ने जगत को तपोवन की तरह माना है क्योंकि वन में सभी प्राणी आपसी तकरार भूलकर भयंकर गर्मी में एक साथ पेड़ों की छाया में बैठते हैं|
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