Hindi, asked by za4598237, 1 month ago

कवि ने 'कनुप्रिया' काव्य में युद्ध की भयंकर ता का ज्वलंत चित्रण किया है । स्पष्ट कीजिए।​

Answers

Answered by sachinshinde7009
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Answer:

कनुप्रिया में युद्धभूमि के ऊपर लीलाभूमि (प्रेमजगत) को तरजीह दी गयी है। प्रेम हृदय का रागात्मक व्यापार है और युद्ध बुद्धि का ध्वंसात्मक व्यापार। अतः प्रेम ही वरणीय है, युद्ध नहीं—“कृष्ण का युद्ध सत्य है या राधा के साथ उनके तन्मयता में बीते प्रेम-क्षण?

Answered by priyarksynergy
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कवि ने 'कनुप्रिया' काव्य में युद्ध की भयंकर का ज्वलंत :

Explanation:

  • कनुप्रिया में युद्धभूमि के ऊपर लीलाभूमि (प्रेमजगत) को तरजीह दी गयी है। प्रेम हृदय का रागात्मक व्यापार है और युद्ध बुद्धि का ध्वंसात्मक व्यापार।
  • शायद प्रेम के क्षण ही सत्य हैं, क्योंकि वे दुविधाहीन मन की संकल्पनात्मक अनुभूति हैं और युद्ध दुविधा की उपज, अनजिये सत्य का आभास।
  • ”लीलाभूमि से युद्धभूमि तक जाने की प्रक्रिया में मनुष्य क्रमशः रागात्मकता से दूरी बनाता चला जाता है, उसका संपर्क क्रमशः हृदय से टूटता जाता है और वह हृदयहीन और स्वार्थी होता जाता है।
  • यद्यपि वह अपने भौतिक विकास के लिए ही बुद्धि का सहारा लेता है पर बुद्धि के साथ हृदय को भी न रखने के कारण वह हृदयहीन हो जाता है।
  • ऊपर यह कहा जा चुका है कि युद्ध की स्थिति तक व्यक्ति अपनी कोमल भावनाओं को दबाकर ही पहुँचता है और रही-सही कसर युद्ध की घटनाएँ पूरी कर देती हैं।
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