कवि ने लकसमी के सुनहरे मंदिर का गुंबद किसे कहा है
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'पथिक' कविता में कवि 'रामनरेश त्रिपाठी ने लक्ष्मी के सुनहरे मंदिर का गुंबद सूर्य के बिंब को कहा है।
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कवि ने लकसमी के सुनहरे मंदिर का गुंबद किसे कहा है
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'पथिक' कविता में कवि 'रामनरेश त्रिपाठी ने लक्ष्मी के सुनहरे मंदिर का गुंबद सूर्य के बिंब को कहा है।
Explanation:
'पथिक' कविता में कवि 'रामनरेश त्रिपाठी ने लक्ष्मी के सुनहरे मंदिर का गुंबद सूर्य के बिंब को कहा है।
कविता में कवि कहता है कि समुद्र की सतह से सूर्य का अधूरा बिंब निकल रहा है यानी कि आधा सूर्य पानी के अंदर है और आधा सूर्य पानी के बाहर है। इस दृश्य से ऐसा प्रतीत हो रहा है, जैसे लक्ष्मी देवी के सुनहरे स्वर्ण मंदिर का कोई चमकता हुआ गुंबद हो।
विशाल समुद्र की सतह से निकलते हुए सूरज को देख कर कभी सोचता है कि ऐसा लगता है मानो ऐसा लगता है कि सूरज की किरणों से लक्ष्मी जी को लाने के लिए सोने का रास्ता बना दिया समुद्र द में बने सूरज के आधे चित्र को देखकर कवि ने लक्ष्मी देवी के सुनहरे मंदिर का गुंबद कहा था जल के अंदर आदर्श आया हुआ था और आधा बाहर निकला हुआ था इस दृश्य को देखकर कभी ने ऐसा कहा ।
'पथिक' कविता में दुनिया के दुखों से विरक्त काव्य नायक पथिक की प्रकृति के सौंदर्य पर मुग्ध होकर वहीं बसने की इच्छा का वर्णन किया है। यहाँ वह किसी साधु द्वारा संदेश ग्रहण करके देशसेवा का व्रत लेता है। राजा उसे मृत्युदंड देता है, परंतु उसकी कीर्ति समाज में बनी रहती है।
सागर के किनारे खड़ा पथिक, उसके सौंदर्य पर मुग्ध है। प्रकृति के इस अद्भुत सौंदर्य को वह मधुर मनोहर प्रेम कहानी की तरह पाना चाहता है। प्रकृति के प्रति पथिक का यह प्रेम उसे अपनी पत्नी के प्रेम से दूर ले जाता है। इस रचना में प्रेम, भाषा व कल्पना का अद्भुत संयोग मिलता है।
यह 'पथिक' खंडकाव्य का अंश है। इसमें कवि ने प्रकृति के सुंदर रूप का चित्रण किया है । पथिक सागर के किनारे खड़ा है। वह आसमान में मेघमाला और नीचे नीले समुद्र को देखकर बादलों पर बैठकर विचरण करना चाहता है। वह लहरों पर बैठकर समुद्र का कोना-कोना देखना चाहता है। समुद्र तल से आते हए सूरज को देखकर कवि कल्पना करता है मानो सूर्य की किरणों ने लक्ष्मी को लाने के लिए सोने की सड़क बना दी हो। वह सागर की मजबूत, भयहीन व धीर गर्जनाओं पर मुग्ध है तथा असीम आनंद पाता है। चंद्रमा के उदय के बाद आकाश में तारे छिटक जाते हैं और कवि उस सौंदर्य पर मुग्ध है। चंद्रमा की रोशनी से वृक्ष अलंकृत से हो जाते हैं, पक्षी चहक उठते हैं, फूल महक उठते हैं तथा बादल बरसने लगते हैं। पथिक भी भावुक होकर आँसू बहाने लगता है । पथिक लहर, समुद्र, तट, पत्ते, वृक्ष पहाड़ आदि सबको पाकर सुख व आनंद का जीवन जीना चाहता है।
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