कविः सागरस्य कान् गुणान् अवलोकयति? (कवि सागर के किन गुणों को देखता है?)
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कानि घंहे जायवैयकता नहीं की कविता के मुल-किन के लिए यह हुम-र निहायत सपाट है । ... जाशवाद---चाहे वह कक्तिकारी अवय से ही पूर्ण बल न हो, कविता को 'स/मान्यताओं के सागर' में दुशे देता है अ-अंत कविता अपनी (जीवन्तता खो बैठती है । इसीलिए अधी-से-जले विष्य पर भी कमी-अभी बेहद खराब कविताएँ" देखने में जाती हैं
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