कवि स्वयं को धागा क्यों मानता है?
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कवि स्वयं को धागा क्यों मानता है?
कवि स्वयं को धागा इसलिए मानते क्योंकि वह कहते है यदि भगवान मोती हैं तो मैं एक धागा हूँ जिसमें मोतियाँ पिरोई जाती हैं। हे भगवान आप मोती हो और मैं उस जल में पिरोया जाने वाली धागा हूँ | ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार सोने और सुहागा के मिलने पर होता है | मैं सदैव आपने निकट ही रहना चाहता हूँ|
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क्योंकि कवि सदैव ईश्वर के निकट रहना चाहता है|
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