कविता के अंत में सुखिया के पिता की वेदना किस प्रकार प्रकट हुई
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वह बहुत दुखी था उसने सोचा कि वह आखिरी समय अपनी बेटी की आखिरी इच्छा भी पूरी ना कर सका और उसको आखरी बार गोद में भी ना ले सका
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इस कविता का केंद्रीय भाव यह है कि छुआछूत मानवता पर कलंक है। किसी को जन्म के आधार पर अछूत मानना और उसे मंदिर में प्रवेश न करने देना अपराध है। सुखिया के पिता को तथाकथित भक्तों ने केवल इसलिए पीटा क्योंकि वह अछूत था। इस कारण उसे मंदिर में नहीं आने दिया गया। न्यायालय ने भी उस पर अन्याय किया। उसे सात दिनों की सज़ा केवल इसलिए सुनाई गई क्योंकि उसने मंदिर में घुसकर मंदिर की पवित्रता नष्ट की थी। कवि कहना चाहता है कि अछूतों पर किए जाने वाले ये अत्याचार घिनौने हैं। इन्हें रोका जाना चाहिए।
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