Hindi, asked by gbarman74, 2 months ago

कविता का मूल संदेश क्या है?
(क) झाँसी की रानी की याद दिलाना
(ख) देश-प्रेम की भावना जगाना
(ग) रानी लक्ष्मीबाई का परिचय देना
(घ) 1857 के युद्ध का वर्णन करना


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Explanation:

झाँसी की रानी हिंदी भाषा की कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा लिखी गयी एक कविता है। कविता का विषय 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में लड़ने वाली, झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई और उनके द्वारा अंग्रेजों के साथ लड़ा गया युद्ध है। वीर रस की यह कविता स्वतंत्रता आंदोलन में प्रेरणास्रोत बनी और मंच से पाठ, प्रभात-फेरियों में गाये जाने इत्यादि के अलावा अब भी विभिन्न राज्यों के विद्यालयी पाठ्यक्रम में शामिल है।[1][2][3]

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झाँसी की रानी एक वीर रस की कविता है जो उस दौर में लिखी गयी जब हिंदी भाषा के साहित्य में छायावाद मुखर था।[4] कविता तत्कालीन बुंदेली लोकगीत को आधार बना कर लिखी गयी थी[5] और इसे भारतीय राष्ट्रवाद की हिंदी साहित्य में सबल अभिव्यक्ति के रूप में देखा जाता है।[6][7] इसे कवयित्री द्वारा झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के प्रति एक श्रद्धांजलि के रूप में भी देखा जाता है।[8]

अनुक्रम

परिचयसंपादित करें

कविता का हर अंतरे का अंत इस कथन से होता है कि लेखिका ने रानी लक्ष्मीबाई की कथा बुंदेलों से सुनी है। कैसे वो राजवंश में जन्मीं और बाल्यकाल से ही अत्यंत वीरांगना थीं। वे शिवाजी जैसे वीरों की उपासक थीं। अल्पायु में ही विवाह करके वे झाँसी आ गईं। परंतु राणा के निःसंतान मरण से वे शोकाकुल हो गईं परंतु दूसरी ओर डलहाॅजी बहुत प्रसन्न क्योंकि अब वो झाँसी पर अधिकार कर सकता था। लेखिका स्वतंत्रता संग्राम के दूसरे महावीरों को स्मरण और राज घरानों की अवस्था का विवरण करती है। दूसरी ओर रानी काना और मंदरा सखियों के साथ वीरतापूर्वक युद्ध कर और वाॅकर को हराकर ग्वालियर की ओर चल पड़तीं हैं परंतु सिंधिया के द्रोह के कारण उन्हें ग्वालियर छोड़ना पड़ता है। उसके पश्चात उन्होंने किसी प्रकार स्मिथ को भी हरा दिया। परंतु उनके घोड़े के अकस्मात् मरण हो जाता है। ह्यूरोज़ से लड़कर वे आगे चल देतीं हैं। परंतु शत्रु के घिर आने के कारण उन पर वार पर वार होने लगते हैं। आगे एक बड़ा नाला आ गया। उन्होंने सोचा कि वो उसे पार कर लेंगी। परंतु घोड़ा नया था, वो उस नाले को पार नहीं कर पाया और नाले में गिरकर रानी का मरण हो गया। उसके पश्चात् लेखिका रानी को श्रद्धांजलि देती है।

झांसी की रानी कवितासंपादित करेंसिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,बूढ़े भारत में भी आई फिर से नयी जवानी थी,गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥कानपूर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी,लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी,नाना के सँग पढ़ती थी वह, नाना के सँग खेली थी,बरछी, ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी।वीर शिवाजी की गाथायें उसको याद ज़बानी थी,बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार,देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार,नकली युद्ध-व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवाड़।महाराष्ट्र-कुल-देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी,बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में,ब्याह हुआ रानी बन आई लक्ष्मीबाई झाँसी में,राजमहल में बजी बधाई खुशियाँ छाई झाँसी में,सुघट बुंदेलों की विरुदावलि-सी वह आयी थी झांसी में।चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव को मिली भवानी थी,बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजियाली छाई,किंतु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई,तीर चलाने वाले कर में उसे चूड़ियाँ कब भाई,रानी विधवा हुई, हाय! विधि को भी नहीं दया आई।निसंतान मरे राजाजी रानी शोक-समानी थी,बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥बुझा दीप झाँसी का तब डलहौज़ी मन में हरषाया,राज्य हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया,फ़ौरन फौजें भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहराया,लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य झाँसी आया।अश्रुपूर्ण रानी ने देखा झाँसी हुई बिरानी थी,बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥अनुनय विनय नहीं सुनती है, विकट शासकों की माया,व्यापारी बन दया चाहता था जब यह भारत आया,डलहौज़ी ने पैर पसारे, अब तो पलट गई काया,राजाओं नव्वाबों को भी उसने पैरों ठुकराया।रानी दासी बनी, बनी यह दासी अब महरानी थी,बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥छिनी राजधानी दिल्ली की, लखनऊ छीना बातों-बात,कैद पेशवा था बिठूर में, हुआ नागपुर का भी घात,उदैपुर, तंजौर, सतारा,कर्नाटक की कौन बिसात?जब कि सिंध, पंजाब ब्रह्म पर अभी हुआ था वज्र-निपात।बंगाले, मद्रास आदि की भी तो वही कहानी थी,बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥रानी रोयीं रनिवासों में, बेगम ग़म से थीं बेज़ार,उनके गहने कपड़े बिकते थे कलकत्ते के बाज़ार,सरे आम नीलाम छापते थे अंग्रेज़ों के अखबार,'नागपुर के ज़ेवर ले लो लखनऊ के लो नौलख हार'।यों परदे की इज़्ज़त परदेशी के हाथ बिकानी थी,बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥कुटियों में भी विषम वेदना, महलों में आहत अपमान,वीर सैनिकों के मन में था अपने पुरखों का अभिमान,नाना धुंधूपंत पेशवा जुटा

Answered by WaterFairy
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\red { \underline{ \boxed{ \sf { \bigstar \: प्रश्न}}}}

कविता का मूल संदेश क्या है?

(क) झाँसी की रानी की याद दिलाना

(ख) देश-प्रेम की भावना जगाना

(ग) रानी लक्ष्मीबाई का परिचय देना

(घ) 1857 के युद्ध का वर्णन करना

\purple { \underline{ \boxed{ \sf { \bigstar \: उत्तर}}}}

(ख) देश-प्रेम की भावना जगाना

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