(६) कविता की प्रथम चार पंक्तियों का भावार्थ लिखिए।
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कविता" की परिभाषा को कविता के माध्यम से समझें। युवा शायर और कवि बाग़ी विकास (इलाहाबाद) कहते हैं कि,
" 'कविता' राजा-रानी के सिंहासन का गुणगान नहीं
'कविता' चंदरबरदाई की पीढ़ी का अभियान नहीं
'कविता' नारी के शरीर की सुन्दरता का शोध नहीं
'कविता' केवल कुछ शब्दों की तुकबंदी का बोध नहीं...
जो अनाथ बच्चों की पीड़ा कह पाए वो 'कविता' है
जो माँ के अश्कों के संग-संग बह पाए वो 'कविता' है
जो सुनने-पढ़ने वालों को याद रहे वो 'कविता' है
जो कवि के मर जाने के भी बाद रहे वो 'कविता' है..."
- बाग़ी विकास
कविता क्या है ? क्या शब्द है, क्या अर्थ है?
कविता शब्द नहीं है,कविता अर्थ नहीं है,कविता वह अनुभूति भी नहीं,कविता वह रीति नीति भी नहीं जिस बंधन और तुकांत में कविता दिखती है। कविता काष्ठ की अग्नि है,कविता ऋषि के ध्यान में उतरी ध्वनि है,कविता किसी संवेदना का उन्मुक्त प्रवाह हो,हो सकता है वो कोई आग हो,कविता गंधर्व की राग हो,हो सकता है बेआवाज हो।
किंतु वेद जैसे अपौरुषेय कहे गए हैं कविकुलगुरु जिसे अनायास, अनपेक्षित-अनिश्चित,अलक्ष्य कह गए हैं, शायद उसे कोई इलहाम कह गया है ,कोई ईश्वरीय आदेश और ज्ञान कह गया है।कविता उतरती है,उतारी जाती है,पूरी तैयारी और छंद ध्वनि राग साधना के साथ।शेर कहे जाते हैं,नाट्य होते जाते हैं,गीत सुरों में,स्वरों में उतारे जाते हैं पूरी नजाकत- नफासत स्वागत के साथ।बस यही कविता की गति है।कविता तुलसी का लोकगीत है,सूर की अंधी वात्सल्य-भक्ति दृष्टि है,मीरा की प्रेम दीवानगी,कबीरा की फकीरी है। दादू नानक की समाज दृष्टि,रैदास की दैन्य भक्ति है।
कवि के मानस की अतल गहराइयों से कोई ईश्वरीय दृष्टि,कोई अनुभूति,कोई प्रवाह,कोई गंगधार,,,,कुछ भी ,कभी भी उतर सकता है।बस अनुकूल मानस हो, समय हो,स्थिति हो,अध्ययन या सतसंग की पृष्ठमूमि हो।।।
"कविता" केवल रसात्मक या कर्णप्रिय अभिव्यक्ति नहीं है बल्कि कविता वह है जो कानों के माध्यम से हृदय को आंदोलित करे। जिस भाव की कविता हो उस भाव को जागृत करने में सक्षम हो। दीन-दुखियों, अनाथों, वंचितों और माँ की पीड़ा को प्रदर्शित करने में सक्षम हो। समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने वाली कविता ही वास्तविक कविता होती है। यही उसका सौंदर्य है। ये आठ पंक्तियाँ बड़ी ही सुंदरता से बताती हैं कि "कविता क्या नहीं है" और "कविता क्या है"....
" 'कविता' राजा-रानी के सिंहासन का गुणगान नहीं
'कविता' चंदरबरदाई की पीढ़ी का अभियान नहीं
'कविता' नारी के शरीर की सुन्दरता का शोध नहीं
'कविता' केवल कुछ शब्दों की तुकबंदी का बोध नहीं...
जो अनाथ बच्चों की पीड़ा कह पाए वो 'कविता' है
जो माँ के अश्कों के संग-संग बह पाए वो 'कविता' है
जो सुनने-पढ़ने वालों को याद रहे वो 'कविता' है
जो कवि के मर जाने के भी बाद रहे वो 'कविता' है..."
- बाग़ी विकास
कविता क्या है ? क्या शब्द है, क्या अर्थ है?
कविता शब्द नहीं है,कविता अर्थ नहीं है,कविता वह अनुभूति भी नहीं,कविता वह रीति नीति भी नहीं जिस बंधन और तुकांत में कविता दिखती है। कविता काष्ठ की अग्नि है,कविता ऋषि के ध्यान में उतरी ध्वनि है,कविता किसी संवेदना का उन्मुक्त प्रवाह हो,हो सकता है वो कोई आग हो,कविता गंधर्व की राग हो,हो सकता है बेआवाज हो।
किंतु वेद जैसे अपौरुषेय कहे गए हैं कविकुलगुरु जिसे अनायास, अनपेक्षित-अनिश्चित,अलक्ष्य कह गए हैं, शायद उसे कोई इलहाम कह गया है ,कोई ईश्वरीय आदेश और ज्ञान कह गया है।कविता उतरती है,उतारी जाती है,पूरी तैयारी और छंद ध्वनि राग साधना के साथ।शेर कहे जाते हैं,नाट्य होते जाते हैं,गीत सुरों में,स्वरों में उतारे जाते हैं पूरी नजाकत- नफासत स्वागत के साथ।बस यही कविता की गति है।कविता तुलसी का लोकगीत है,सूर की अंधी वात्सल्य-भक्ति दृष्टि है,मीरा की प्रेम दीवानगी,कबीरा की फकीरी है। दादू नानक की समाज दृष्टि,रैदास की दैन्य भक्ति है।
कवि के मानस की अतल गहराइयों से कोई ईश्वरीय दृष्टि,कोई अनुभूति,कोई प्रवाह,कोई गंगधार,,,,कुछ भी ,कभी भी उतर सकता है।बस अनुकूल मानस हो, समय हो,स्थिति हो,अध्ययन या सतसंग की पृष्ठमूमि हो।।।
"कविता" केवल रसात्मक या कर्णप्रिय अभिव्यक्ति नहीं है बल्कि कविता वह है जो कानों के माध्यम से हृदय को आंदोलित करे। जिस भाव की कविता हो उस भाव को जागृत करने में सक्षम हो। दीन-दुखियों, अनाथों, वंचितों और माँ की पीड़ा को प्रदर्शित करने में सक्षम हो। समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने वाली कविता ही वास्तविक कविता होती है। यही उसका सौंदर्य है। ये आठ पंक्तियाँ बड़ी ही सुंदरता से बताती हैं कि "कविता क्या नहीं है" और "कविता क्या है"....
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प्रस्तुत कविता 'कृषक गान ' [दिनेश भारद्वाज द्वारा रचित] मे गीत शैली के अंतर्गत कवि द्वारा प्रथम चार पंक्तियों में अन्नदाता किसान का महत्व और महिमामंडन करते हुए उसकी स्वभावगत विशेषताओं का वर्णन किया गया है | कवि कहते हैं कि किसान में संतोष की भावना कूट-कूट कर भरी होती है | तलवार का रूपक देते हुए कवि ने किसान के संतोषी स्वभाव को उसका हथियार भी माना है | कवि के अनुसार ये संसार भले ही ऐश्वर्य- विलासिता का जीवन जिए किन्तु किसान का जीवन सदैव अभावग्रस्त रहता है | किसान के ऐसे जीवन को पतझड़ और दुनिया के ऐसे जीवन को कवि ने मधुमास अर्थात बसंत ऋतु की संज्ञा दी है | दीन-हीन होने के बाद भी ऐसे जीवन का किसान को अभिमान है | वह सबका अन्नदाता है अत: उसके दीनतापूर्ण जीवन की भी गरिमा है | इसी गरिमा का कवि गौरव - गान करना चाहता है |
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