कविता ' निश्छल भाव की ' भावार्थ अपने शब्दों में लिखें -
कविता निश्छल भाव की ' भावार्थ मेरे अंदर एक सूरज है , जिसकी सुनहरी धूप देर तक मंदिर पे ठहरकर मस्जिद पे पसर जाती है ! शाम ढले , गुरुद्वारे की दीवार को छूती हुई गिरजाघर की चोटी को चूमकर छूमंतर हो जाती है !
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