कविता
नदी
सेलाव रुप प्यारण कर तुम
उफनाती हो जब लहर-लहर
पुल, सड़क, रेल वह जाती है
घर-थर करते है गाँव-शहर
फिर सागर की व्यापकता में
मिल जाती हो, खो जाती हो
खोजने निकली थी
वह लक्ष्य स्वयं ही जाती है
प्रशन्न का उत्तर दिजिए
नदी स्वयं लक्ष्य कैसे हो जाती है?
आशय स्पष्ट कीजिए
ii. जो लक्ष्य खोजने निकली थी
वह लक्ष्य स्वयं हो जाती हो।
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