कविता'पर्वत प्रदेश में पावस' की सार्थकता पर अपने विचार प्रकट किजिए।
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कविता'पर्वत प्रदेश में पावस' की सार्थकता पर अपने विचार प्रकट किजिए।
कविता'पर्वत प्रदेश में पावस' कवि सुमित्रानंदन पंत जी द्वारा लिखी गई है| कविता में कवि ने प्रकृति का बड़ा ही सजीव चित्रण किया है।
कविता में कवि ने पर्वतीय प्रदेश में वर्षाकाल में क्षण-क्षण होने वाले परिवर्तनों और अनेक दृश्यों का सजीव चित्रण किया है| कवि कहते है वर्षा ऋतु में पहाड़ों के ऊपर कभी धूप खिल जाती है, तो कभी उन्हीं पहाड़ों को घने काले बादल आ जाते है, अर्थात उन्हें छुपा लेते हैं।
पर्वत अपने विशाल रूप को अनेक चरणों में स्थित बड़े-बड़े तालाबों में अपने नेत्रों से देख रह है| बहते हुए झरने दर्शकों की नस-नस में उमंग और उल्लास भर रहे है| पर्वतों के सीनों को फाड़कर मानो बहार आए हो और शांत आकाश को निहार रहे है| उसके बाद अचानक से बादल उड़ गए हो| कभी-कभी ऐसा लगता है की मानो आकाश धरती पर टूट पड़ा और उसके भय से विशाल पेड़ जमीन में धस गए हो| तालों से उड़ती हुई भाप ऐसी लगती है जैसे कहीं आग लग गई हो| प्रकृति के विभिन्न रूपों को देखकर लगता है जैसे इंद्र बादलों में घूम-घूम कर अपना खेल खेल रहे है|
कविता'पर्वत प्रदेश में पावस' की सार्थकता पर अपने विचार प्रकट किजिए।
कविता'पर्वत प्रदेश में पावस' कवि सुमित्रानंदन पंत जी द्वारा लिखी गई है| कविता में कवि ने प्रकृति का बड़ा ही सजीव चित्रण किया है।
कविता में कवि ने पर्वतीय प्रदेश में वर्षाकाल में क्षण-क्षण होने वाले परिवर्तनों और अनेक दृश्यों का सजीव चित्रण किया है| कवि कहते है वर्षा ऋतु में पहाड़ों के ऊपर कभी धूप खिल जाती है, तो कभी उन्हीं पहाड़ों को घने काले बादल आ जाते है, अर्थात उन्हें छुपा लेते हैं।
पर्वत अपने विशाल रूप को अनेक चरणों में स्थित बड़े-बड़े तालाबों में अपने नेत्रों से देख रह है| बहते हुए झरने दर्शकों की नस-नस में उमंग और उल्लास भर रहे है| पर्वतों के सीनों को फाड़कर मानो बहार आए हो और शांत आकाश को निहार रहे है| उसके बाद अचानक से बादल उड़ गए हो| कभी-कभी ऐसा लगता है की मानो आकाश धरती पर टूट पड़ा और उसके भय से विशाल पेड़ जमीन में धस गए हो| तालों से उड़ती हुई भाप ऐसी लगती है जैसे कहीं आग लग गई हो| प्रकृति के विभिन्न रूपों को देखकर लगता है जैसे इंद्र बादलों में घूम-घूम कर अपना खेल खेल रहे है|