कवित्री ने बचपन को अतुल्य आनंददायक क्यों कहा है?
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‘मेरा नया बचपन’ कविता सुभद्रा जी की एक मनमोहक रचना है। कवयित्री ने जीवन की सबसे अधिक प्रिय, बाल्यावस्था के भाव भीगे शब्द-चित्रों से इसे सजाया है।
कवयित्री को बार-बार अपने बचपन के दिनों की मधुर यादें आती रहती हैं। उसे लगता है कि बपचन के जाने के साथ, उसके जीवन से सबसे बड़ी खुशी विदा हो गई है। बचपन का निर्भय और स्वच्छंद होकर खेलना-खाना, ऊँच-नीच और छुआ-छूत रहित मस्त जीवन आज भी उसे भूला नहीं है।
जब भी कवयित्री रोती-मचलती थी तो उसकी माँ घर के सारे काम-काज छोड़कर उसे मनाने आ जाती थी। उसके दादा भी उसे गोद में लेकर चंदा दिखाया करते थे। बचपन बीता तो पहले किशोरावस्था और फिर जवानी भी आ पहुँची। कवयित्री के हाव-भाव, गतिविधि और रुचियाँ सब कुछ बदल गए।
कवयित्री को यौवन का संघर्ष भरा जीवन उबाने लगा। विवाह के पश्चात् उसे घर सूना-सा लगने लगा। तभी उसके घर में एक बेटी ने जन्म लिया और कवयित्री की तो जैसे सारी दुनिया ही बदल गई। बिटिया की ‘ओ माँ’ पुकार और माँ काओ’ (माँ खाओ) जैसी भोली मनुहार ने उसके जीवन में जैसे उसके बचपन को फिर से साकार कर दिया।
इस प्रकार सुभद्रा जी का बचपन नया रूप-बेटी-बनकर उन्हें फिर से मिल गया।