Hindi, asked by Sudoo39281, 9 months ago

"कवि देव के श्रृंगार वर्णन की विशेषता, उसका भाव प्रधान होना है।" इस कथन पर संकलित छंदों के आधार पर अपना मत प्रस्तुत कीजिए।

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Answered by bhatiamona
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Answer:

कभी देव के दो छंदों में श्रंगार रस की मार्मिक व्यंजना हुई है। इन छंदों में संयोग और वियोग श्रृंगारों के रस की संयोजना भी हुई हुई है।

एक छंद “धार में धाय......भय मेरी” में कवि देव ने श्री कृष्ण के प्रेम में डूबी हुई  नायिका की भावनाओं का मार्मिक चित्रण पेश किया है। नायिका श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम में विवश हो गई हैं पर वोअपनी विवशता को व्यक्त नही करती। लेकिन उनकी आंखें उनके वश में नहीं हैं और बिना सोचे समझे श्री कृष्ण की प्रेम की धारा में बहती जा रही हैं। नायिका ने आंखों को रोकने का लाख प्रयत्न किया किंतु वह असफल रही। जितना उन्होंने आंखों को रोकने का प्रयत्न किया वे उतनी और ज्यादा प्रेम में डूबती गई और बहती चली गईं। नायिका कहती है कि उसका अपनी आंखों पर कोई वश नहीं है वो तो श्री कृष्ण के मनोहारी रूप की दासी जैसी हो गई है और इस मनोहारी रूप के रस का पान मधुमक्खी की भांति करना चाहती हैं। संयोग श्रृंगार के इस चित्र में शिल्प की सजावट से अधिक कवि का ध्यान नायिका की भावनाओं के व्यक्त करने पर रहा है। यह छंद पाठकों को संयोग श्रंगार रस से ओत-प्रोत करने में पूरी तरह सफल रहा है।

दूसरे छंद ”झहरि झहरि..... है” में में भी कवि का ध्यान श्री कृष्ण के विरह में पीड़ित विरहिणी नायिका की व्यथा को प्रकट करने पर केंद्रित है। यह वियोग श्रृंगार की सुंदर रचना है।

सीधी सरल भाषा में कहें तो कवि ने अपने दोनो छंदों में संयोग और वियोग श्रंगार का अद्भुत चित्रण किया है।

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