कवियों शायरों और आम आदमी को सम्मोहित करने वाला पलाश आज संकट में है । गद्यांश
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कवियों, शायरों तथा आम आदमी को सम्मोहित करने वाला ‘पलाश’ आज संकट में है। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि अगर इसी तरह पलाश का विनाश जारी रहा, तो यह ‘ढाक के तीन पात’ वाली कहावतु में ही बचेगा। अरावली और सतपुड़ा पर्वत श्रृंखलाओं में जब पलाश वृक्ष चैत (वसंत) में फूलता था, तो लगता था कि वन में आग लग गई हो अथवा अग्नि देव फूलों के रूप में खिल उठे हों। पलाश पर एक-दो दिन में ही संकट नहीं आ गया है। पिछले तीस-चालीस वर्षों में दोना-पत्तुल बनाने वालों, कारखाने बुढ़ने, गाँव-गाँव में चकबंदी होने तथा वन माफियाओं द्वारा अंधाधुंध कटान कराने के कारण उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, कर्नाटक, महाराष्ट्र आदि प्रांतों में पलाश के वन घुटकर 10% से भी कम रह गए हैं। वैज्ञानिकों ने पुलाशु वनों को बचाने के लिए ऊतुक संवर्द्धन (टिशू कल्चर) द्वारा परखनली में पलाश के पौधों को विकसित कर एक अभियान चलाकर पलाश वन रोपने की योजना प्रस्तुत की है। हरियाणा तथा पुणे में ऐसी दो प्रयोगशालाएँ भी खोली गई हैं। एक समय था, जब बंगाल का पलाशी का मैदान, अरावली की पूर्वत-मालाएँ टेसू के फूलों के लिए दुनियाभर में मशहूर थीं। विदेशों से लोग पलाश के रक्तिम वर्ण के फूल देखने आते थे।
#SPJ2
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Concept:
कवियों, शायरों तथा आम आदमी को सम्मोहित करने वाला 'पलाश' आज संकट में है। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि अगर इसी तरह पलाश का विनाश जारी रहा, तो यह 'ढाक के तीन पात' वाली कहावतु में ही बचेगा।
Find:
कवियों शायरों और आम आदमी को सम्मोहित करने वाला पलाश आज संकट में है ।
Given:
कवियों शायरों और आम आदमी को सम्मोहित करने वाला पलाश आज संकट में है ।
Explanation:
आम आदमी से लेकर साधु-सन्यासियों को सम्मोहित करने वाला 'पलाश' का वृक्ष आज संकट में है। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि अगर का विनाश जारी रहा तो पलाश यानी टेसू यानी ढाक 'ढाक के तीन पात' वाली कहावत में ही शेष बचेगा। अरावली, सतपुड़ा पर्वत श्रृंखलाओं में जब पलाश वृक्ष चैत में फूलते थे तो लगता था कि मीलों लम्बे पलाश वन में आग लग गई हो। स्वयं अग्नि देव फूलों के रूप में खिल उठे हों। खेतों की मेड़ों से लेकर पर्वतों तक अपना ध्वज फहराने वाला पलाश, एक-दो दिन में ही संकट में नहीं आ गया है। पिछले तीस-चालीस वर्षों में दोना पत्तल बनाने वाले कारखानों के बढ़ने, गाँव-गाँव में चकबन्दी होने तथा वन माफियाओं द्वारा अन्धाधुन्ध कटान कराने के कारण उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, बंगाल, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, कर्नाटक, महाराष्ट्र आदि प्रान्तों में पलाश के वन घटकर दस प्रतिशत से भी कम रह गए हैं।
कवियों, शायरों तथा आम आदमी को सम्मोहित करने वाला 'पलाश' आज संकट में है। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि अगर इसी तरह पलाश का विनाश जारी रहा, तो यह 'ढाक के तीन पात' वाली कहावतु में ही बचेगा। अरावली और सतपुड़ा पर्वत श्रृंखलाओं में जब पलाश वृक्ष चैत (वसंत) में फूलता था, तो लगता था कि वन में आग लग गई हो अथवा अग्नि देव फूलों के रूप में खिल उठे हों। पलाश पर एक-दो दिन में ही संकट नहीं आ गया है। पिछले तीस-चालीस वर्षों में दोना-पत्तुल बनाने वालों, कारखाने बुढ़ने, गाँव-गाँव में चकबंदी होने तथा वन माफियाओं द्वारा अंधाधुंध कटान कराने के कारण उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, कर्नाटक, महाराष्ट्र आदि प्रांतों में पलाश के वन घुटकर 10% से भी कम रह गए हैं। वैज्ञानिकों ने पुलाशु वनों को बचाने के लिए ऊतुक संवर्द्धन (टिशू कल्चर) द्वारा परखनली में पलाश के पौधों को विकसित कर एक अभियान चलाकर पलाश वन रोपने की योजना प्रस्तुत की है। हरियाणा तथा पुणे में ऐसी दो प्रयोगशालाएँ भी खोली गई हैं। एक समय था, जब बंगाल का पलाशी का मैदान, अरावली की पूर्वत मालाएँ टेसू के फूलों के लिए दुनियाभर में मशहूर थीं। विदेशों से लोग पलाश के रक्तिम वर्ण के फूल देखने आते थे।
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