Hindi, asked by anitagaikwad909, 6 days ago

कवर्, कुछ ऐ ी तरन ुनरओ ब्ज े उथि-पुथि मच जरए, एक हहिोर इधर े आए एक हहिोर उधर े आए। प्ररणों के िरिे पड़ जरएाँ, त्रहह-त्रहह स्र्र नभ में छरए, नरश और त््रनरशों कर धुआाँधरर जग में छर जरए। बर े आग जिद जि जरए, भस्म रत भूधर हो जरए, परप-पुण्् द दभरर्ों की धूि उड़े उठ दरएाँ-बरएाँ। नभ कर र्क्षस्थि फिं र्ट जरए, तररे र्टूक-र्टूक हो जरएाँ। कवर् कुछ ऐ ी तरन ुनरओ, ब्ज े उथि-पुथि मच जरए। प्रश्न - (क) कवर् की कवर्तर क्रिंनत िरने में कै े हर्क हो कती है?​

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Answered by 130096
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Answer:

यह चाँद उदित होकर नभ में

कुछ ताप मिटाता जीवन का,

लहरा लहरा यह शाखाएँ

कुछ शोक भुला देती मन का,

कल मुर्झानेवाली कलियाँ

हँसकर कहती हैं मगन रहो,

बुलबुल तरु की फुनगी पर से

संदेश सुनाती यौवन का,

तुम देकर मदिरा के प्याले

मेरा मन बहला देती हो,

उस पार मुझे बहलाने का

उपचार न जाने क्या होगा!

इस पार, प्रिये मधु है तुम हो,

उस पार न जाने क्या होगा!

जग में रस की नदियाँ बहती,

रसना दो बूंदें पाती है,

जीवन की झिलमिल सी झाँकी

नयनों के आगे आती है,

स्वर तालमयी वीणा बजती,

मिलती है बस झंकार मुझे,

मेरे सुमनों की गंध कहीं

यह वायु उड़ा ले जाती है;

ऐसा सुनता, उस पार, प्रिये,

ये साधन भी छिन जाएँगे;

तब मानव की चेतनता का

आधार न जाने क्या होगा!

इस पार, प्रिये मधु है तुम हो,

उस पार न जाने क्या होगा!

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