कवयित्री मनुष्य के समभावी होने का क्या आधार मानती है।
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कवयित्री परमात्मा को साहब मानती है, जो भवसागर से पार करने में समर्थ हैं। वह साहब को पहचानने का यह उपाय बताती है कि मनुष्य को आत्मज्ञानी होना चाहिए। वह अपने विषय में जानकर ही साहब को पहचान सकता है। ... अर्थात् मनुष्य की साँसे कब रुक जाए , इसका कुछ पता नहीं है।
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