कवयित्री स्वयं को असहाय एवं विवश क्यों कहती हैं ?
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कवयित्री स्वयं को असहाय तथा विवश इसलिए कहती है कि उसने अपने बेटे की देख–भाल तथा उसके लालन–पालन पर अपना पूरा ध्यान केन्द्रित कर दिया। अपनी सुविधा असुविधा का कभी विचार नहीं किया।
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कवियित्री स्वयं को असहाय एवं विवश इसलिए कहती है क्योंकि उसके पुत्र की असमय मृत्यु हो गई है।
- कवियित्री ने इस कविता में अपने पुत्र के वियोग में व्याकुल एक मां की व्यथा का वर्णन किया है जब उसके पुत्र की असमय मृत्यु हो जाती है।
- उस वक्त एक मां अपने आप को बिल्कुल बेसहारा पाती है।
- कवियित्री अपने पुत्र की असमय मृत्यु से अति व्यथित है। वह कहती है कि सारा संसार खुश है, हंस रहा है लेकिन पूरे विश्व में केवल मै ही दुखी हूं क्योंकि मेरा खिलौना खो गया है।यहां खिलौना शब्द " पुत्र " के प्रतीक के रूप प्रयोग किया गया है।
- कवियित्री कहती है कि जिस प्रकार एक छोटे से बच्चे को खिलौना सबसे प्यारा होता है, खिलौना खो जाने से वह दुखी हो जाता है तथा खिलौना मिल जाने से वह खुश हो जाता है। इसी प्रकार मेरा खिलौना भी कहीं खो गया है।
- कवियित्री पुत्र की असमय मृत्यु से स्वयं को बेसहारा व विवश समझ रही है।
- वह पूरा दिन उसी में खोई रहती थी, उसकी देखभाल में मग्न रहती थी कि कहीं उसे लू न लग जाए, उसे सर्दी न हो जाए। वह उसे थपकी देकर सुलाती थी। लोरी गाकर सुनाती थी।
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