कवयित्री द्वारा मुक्ति के लिए किए जाने वाले प्रयास व्यर्थ क्यों हो रहे हैं ?
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कवयित्री मानती है कि जीवन रूपी नाव नश्वर शरीर या प्राण रूपी कच्चे धागे की रस्सी से बंधी है , जो कभी भी टूट सकती है अर्थात् जीवन समाप्त हो सकता है , ईश्वर - मिलन के उसके सारे प्रयास व्यर्थ हो रहे हैं ।
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कवयित्री के कच्चेपन के कारण उसके मुक्ति के सारे प्रयास विफल हो रहे हैं अर्थात् उसमें अभी पूर्ण रुप से प्रौढ़ता नहीं आई है जिसकी वजह से उसके प्रभु से मिलने के सारे प्रयास व्यर्थ हैं।
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