Kavi ki Drishti Mein Mansarovar Aur Subah Jal ka kya gahan Arth hai
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जल संभर प्रबंधन से तात्पर्य, मुख्य रूप से, धरातलीय और भौम जल संसाधनों के दक्ष प्रबंधन से है। इसके अंतर्गत बहते जल को रोकना और विभिन्न विधियों, जैसे– तालाब, कुओं आदि के द्वारा भौम जल का संचयन और पुनर्भरण शामिल हैं। जल संभर प्रबंधन के अंतर्गत सभी संसाधनों जैसे– भूमि, जल, पौधे और प्राणियों तथा जल संभर सहित मानवीय संसाधनों के संरक्षण, पुनरुत्पादन और विवेकपूर्ण उपयोग को सम्मिलित किया जाता है
भारत में जल के उपयोग की मात्रा बहुत सीमित है। इसके अलावा, देश के किसी-न-किसी हिस्से में प्राय: बाढ़ और सूखे की चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता है। भारत में वर्षा में अत्यधिक स्थानिक विभिन्नता पाई जाती है और वर्षा मुख्य रूप से मानसूनी मौसम संकेद्रित है।
जल संभर प्रबंधन पानी की उपलब्धता को बढ़ाता है, भूमिगत जल स्तर को नीचा होने से रोकता है, फ्लूओराइड और नाइट्रेट जैसे संदूषकों को कम करके अवमिश्रण भूमिगत जल की गुणवत्ता बढ़ाता है, मृदा अपरदन और बाढ़ को रोकता है।
केंद्र और राज्य सरकारों ने देश में बहुत से जल संभर विकास और प्रबंधन कार्यक्रम चलाए हैं। इनमें से कुछ गैर सरकारी संगठनों द्वारा भी चलाए जा रहे हैं। ‘हरियाली’ केंद्र सरकार द्वारा प्रवर्तित जल-संभर विकास परियोजना है जिसका उद्देश्य ग्रामीण जनसंख्या को पीने हेतु, सिंचाई, मत्स्य पालन और वन रोपण के लिए जल संरक्षण के योग्य बनाना है। यह परियोजना लोगों के सहयोग से ग्राम पंचायतों द्वारा निष्पादित की जा रही है।
अलवणीय जल की घटती उपलब्धता और बढ़ती माँग से, सतत पोषणीय विकास के लिए इस महत्वपूर्ण जीवनदायी संसाधन के संरक्षण और प्रबंधन की आवश्यकता बढ़ गई है। भारत को जल संरक्षण के लिये तुरंत कदम उठाने और प्रभावशाली नीतियाँ लागू करने तथा कानून बनाने की आवश्यकता है। साथ ही जल बचत तकनीकी और विधियों के विकास के अतिरिक्त प्रदूषण से बचाव के प्रयास भी करने चाहिये। जल संभर विकास, वर्षा जल संग्रहण, जल के पुन: चक्रण तथा पुन: उपयोग और लंबे समय तक इसकी आपूर्ति बनाये रखने के लिए जल के संयुक्त उपयोग को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।