Kavi ko Nand Ke Kishor mein kya kya Achcha lagta hai ch-9 raskhan
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देख्यो रुप अपार मोहन सुन्दर स्याम को
वह ब्रज राजकुमार हिय जिय नैननि में बस्यो।
रसखान ने जबसे मोहन के अपार सुन्दर श्याम रुप को देखा है-
उस ब्रज के राजकुमार ने उनके हृदय मन मिजाज जी जान तथा आंखों में निवास बना कर बस गये हैं।
अरी अनोखी बाम तूं आई गौने नई
बाहर धरसि न पाम है छलिया तुव ताक में।
अरी अनुपम सुन्दरी तुम नयी नवेली गौना द्विरागमन कराकर ब्रज में आई हो-
तुम्हें मोहन का चाल ढाल मालूम नही है।यदि तुम घर के बाहर पैर रखी तो समझ लो-वह छलिया तुम्हारी ताक में लगा हुआ है-
पता नहीं कब वह तुम्हें अपने प्रेम जाल में फांस लेगा।
प्रीतम नंद किशोर जा दिन तें नैननि लग्यौ
मन पावन चितचोर प़त्रक ओट नहि सहि सकौं।
जबसे प्रियतम श्रीकृष्ण से आंखें मिली है-मेरा मन परम पवित्र हो गया है।अब तो उस
चितचोर को बृक्ष पत्तों की ओट में भी मन बर्दास्त नही करता है।अब मोहन कृष्ण को
प्रत्यक्ष सम्पूर्ण रुप से देखने के लिये मन ब्याकुल रहता है।
या छवि पै रसखान अब वारौं कोटि मनोज
जाकी उपमा कविन नहि पाई रहे कहुं खोज।
रसखान कहते हैं कि उस सुंदर मनोहर रुप पर करोंरों कामदेव न्योछावर हैं
जिसकी उपमा तुलना कवि लोग कहीं भी ढूंढ खोज नहीं पा रहे हैं।
कृष्ण के रुप सौन्दर्य की तुलना करना संभव नही है।
जोहन नंद कुमार को गई नंद के गेह
मोहि देखि मुसिकाई के बरस्यो मेह सनेह।
रसखान नंद कुमार श्रीकृष्ण को देखने नंद के घर गये थे।
वहां मनमोहन कृष्ण उन्हें देखकर इस प्रकार मुस्कुराये जैसे लगा कि स्नेह प्रेम की बर्शा होने लगी।श्याम का स्नेह रस उमड घुमड कर बरसने लगा।
ए सजनी लोनो लला लह्यो नंद के गेह
चितयो मृदु मुसिकाइ के हरी सबै सुधि गेह।
हे प्रिय सजनी श्याम लला के दर्शन का विशेश लाभ है।
जब हम नंद के घर जाते हैं तो वे हमें मधुर मुसकान से देखते हैं और हम सब की सुधबुध हर लेते हैं।
मोहन छवि रसखानि लखि अब दृग अपने नाहिं
उंचे आबत धनुस से छूटे सर से जाहिं।
रसखान कहते हैं कि मदन मोहन कृष्ण की सुंदर रुप छटा देखने के बाद अब ये आँखें मेरी नही रह गई हैं
जिस तरह धनुश से छूटने के बाद बाण अपना नही रह जाता है।तीर वापिस नही होता है।