Kavi Parichay in Hindi Course-B Class 10 CBSE
कवी परिचय लिखिए (चित्रों सहित) :
१. कबीर
२. मीरा
३. बिहारी
४. मैथिलीशरण गुप्त
५. सुमित्रानंदन पंत
६. महादेवी वर्मा
७. विरेन डंगवाल
८. कैफ़ी आज़मी
९. रवींद्रनाथ ठाकुर
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सूचना :
कवी परिचय | सी.बी.एस.ई बोर्ड परीक्षा केलिए | दसवीं कक्षा के कोर्स-बी पुस्तक के अनुसार लिखो |
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१)कबीर-- संत कबीर ने हिन्दू-मुस्लीम दोनों जातियों को एक सुत्र में बांधने का प्रयास किया और धर्म के झूठे आडंबर-पूर्ण कर्मकांडों पर जमकर प्रहार किये।
वे निर्गुण ब्रह्म के उपासक थे और जाति-व्यवस्था के घोर विरोधी। उन्हें हिन्दू-मुस्लीम एकता का पहला प्रवर्तक माना जाता है। उन्होंने भारतीय समाज को दकियानसी एवं तंगदिली से बाहर निकालकर एक नयी राह पर डालने का प्रयास किया।
२) मीरा-- मीरा बाई एक मध्यकालीन हिन्दू आध्यात्मिक कवियित्री और कृष्ण भक्त थीं। वे भक्ति आन्दोलन के सबसे लोकप्रिय भक्ति-संतों में एक थीं। भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित उनके भजन आज भी उत्तर भारत में बहुत लोकप्रिय हैं और श्रद्धा के साथ गाये जाते हैं। मीरा का जन्म राजस्थान के एक राजघराने में हुआ था।
मीरा बाई के जीवन के बारे में तमाम पौराणिक कथाएँ और किवदंतियां प्रचलित हैं। ये सभी किवदंतियां मीराबाई के बहादुरी की कहानियां कहती हैं और उनके कृष्ण प्रेम और भक्ति को दर्शाती हैं। इनके माध्यम से यह भी पता चलता है की किस प्रकार से मीराबाई ने सामाजिक और पारिवारिक दस्तूरों का बहादुरी से मुकाबला किया और कृष्ण को अपना पति मानकर उनकी भक्ति में लीन हो गयीं। उनके ससुराल पक्ष ने उनकी कृष्ण भक्ति को राजघराने के अनुकूल नहीं माना और समय-समय पर उनपर अत्याचार किये।
३)बिहारी-- बिहारी की एकमात्र कृति सतसैया प्रसिद्ध हैं. इसमे कुल 713 दोहे हैं। इस पर शताधिक टीकाएँ लिखी जा चुकी हैं। पूर्ण बिहारी रत्नाकर नाम से प्रसिद्ध बाबू जगन्नाथदास रत्नाकर की टीका उत्क्रष्ट हैं. सतसैया में भक्ति, निति, हास्य व्यग्य, वीरता, राज प्रशस्ति, धर्म, सत्संग महिमा एवं श्रृंगार का वर्णन दोहों में किया हैं।
कुछ कवित्त भी उनके द्वारा रचे बताए जाते हैं। परन्तु प्रमाणिकता नही हैं। एक ही रचना सतसैया से बिहारी को इतनी ख्याति मिली।
४)राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त -- इनका का जन्म 3 अगस्त, 1886 को झाँसी में हुआ। गुप्तजी खड़ी बोली के प्रथम महत्त्वपूर्ण कवि हैं। गुप्त जी कबीर दास के भक्त थे। पं महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की प्रेरणा से आपने खड़ी बोली को अपनी रचनाओं का माध्यम बनाया। मैथिलीशरण गुप्त को साहित्य जगत में 'दद्दा' नाम से सम्बोधित किया जाता था।
'भारत-भारती', मैथिलीशरण गुप्तजी द्वारा स्वदेश प्रेम को दर्शाते हुए वर्तमान और भावी दुर्दशा से उबरने के लिए समाधान खोजने का एक सफल प्रयोग कहा जा सकता है। भारत दर्शन की काव्यात्मक प्रस्तुति 'भारत-भारती' निश्चित रूप से किसी शोध से कम नहीं आंकी जा सकती। गुप्त जी का 12 दिसंबर, 1964 को झाँसी में निधन हुआ।
५) पंत जी--सुमितानंदन पंत एक भारतीय कवि थे। वह सबसे प्रख्यात "प्रगतिशील" वामपंथी हिंदी भाषा के 20 वीं शताब्दी के कवियों में से एक थे और उनकी कविताओं में रोमांटिकता के लिए जाने जाते थे जो प्रकृति, लोगों और सौंदर्य से प्रेरित थे।
६)महादेवी वर्मा --इनका जन्म 26 मार्च, 1907 को होली के दिन फरुखाबाद (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। आपकी प्रारंभिक शिक्षा मिशन स्कूल, इंदौर में हुई। महादेवी 1929 में बौद्ध दीक्षा लेकर भिक्षुणी बनना चाहतीं थीं, लेकिन महात्मा गांधी के संपर्क में आने के बाद आप समाज-सेवा में लग गईं। 1932 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम.ए करने के पश्चात आपने नारी शिक्षा प्रसार के मंतव्य से प्रयाग महिला विद्यापीठ की स्थापना की व उसकी प्रधानाचार्य के रुप में कार्यरत रही। मासिक पत्रिका चांद का अवैतनिक संपादन किया। 11 सितंबर, 1987 को इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश में आपका निधन हो गया।
वे निर्गुण ब्रह्म के उपासक थे और जाति-व्यवस्था के घोर विरोधी। उन्हें हिन्दू-मुस्लीम एकता का पहला प्रवर्तक माना जाता है। उन्होंने भारतीय समाज को दकियानसी एवं तंगदिली से बाहर निकालकर एक नयी राह पर डालने का प्रयास किया।
२) मीरा-- मीरा बाई एक मध्यकालीन हिन्दू आध्यात्मिक कवियित्री और कृष्ण भक्त थीं। वे भक्ति आन्दोलन के सबसे लोकप्रिय भक्ति-संतों में एक थीं। भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित उनके भजन आज भी उत्तर भारत में बहुत लोकप्रिय हैं और श्रद्धा के साथ गाये जाते हैं। मीरा का जन्म राजस्थान के एक राजघराने में हुआ था।
मीरा बाई के जीवन के बारे में तमाम पौराणिक कथाएँ और किवदंतियां प्रचलित हैं। ये सभी किवदंतियां मीराबाई के बहादुरी की कहानियां कहती हैं और उनके कृष्ण प्रेम और भक्ति को दर्शाती हैं। इनके माध्यम से यह भी पता चलता है की किस प्रकार से मीराबाई ने सामाजिक और पारिवारिक दस्तूरों का बहादुरी से मुकाबला किया और कृष्ण को अपना पति मानकर उनकी भक्ति में लीन हो गयीं। उनके ससुराल पक्ष ने उनकी कृष्ण भक्ति को राजघराने के अनुकूल नहीं माना और समय-समय पर उनपर अत्याचार किये।
३)बिहारी-- बिहारी की एकमात्र कृति सतसैया प्रसिद्ध हैं. इसमे कुल 713 दोहे हैं। इस पर शताधिक टीकाएँ लिखी जा चुकी हैं। पूर्ण बिहारी रत्नाकर नाम से प्रसिद्ध बाबू जगन्नाथदास रत्नाकर की टीका उत्क्रष्ट हैं. सतसैया में भक्ति, निति, हास्य व्यग्य, वीरता, राज प्रशस्ति, धर्म, सत्संग महिमा एवं श्रृंगार का वर्णन दोहों में किया हैं।
कुछ कवित्त भी उनके द्वारा रचे बताए जाते हैं। परन्तु प्रमाणिकता नही हैं। एक ही रचना सतसैया से बिहारी को इतनी ख्याति मिली।
४)राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त -- इनका का जन्म 3 अगस्त, 1886 को झाँसी में हुआ। गुप्तजी खड़ी बोली के प्रथम महत्त्वपूर्ण कवि हैं। गुप्त जी कबीर दास के भक्त थे। पं महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की प्रेरणा से आपने खड़ी बोली को अपनी रचनाओं का माध्यम बनाया। मैथिलीशरण गुप्त को साहित्य जगत में 'दद्दा' नाम से सम्बोधित किया जाता था।
'भारत-भारती', मैथिलीशरण गुप्तजी द्वारा स्वदेश प्रेम को दर्शाते हुए वर्तमान और भावी दुर्दशा से उबरने के लिए समाधान खोजने का एक सफल प्रयोग कहा जा सकता है। भारत दर्शन की काव्यात्मक प्रस्तुति 'भारत-भारती' निश्चित रूप से किसी शोध से कम नहीं आंकी जा सकती। गुप्त जी का 12 दिसंबर, 1964 को झाँसी में निधन हुआ।
५) पंत जी--सुमितानंदन पंत एक भारतीय कवि थे। वह सबसे प्रख्यात "प्रगतिशील" वामपंथी हिंदी भाषा के 20 वीं शताब्दी के कवियों में से एक थे और उनकी कविताओं में रोमांटिकता के लिए जाने जाते थे जो प्रकृति, लोगों और सौंदर्य से प्रेरित थे।
६)महादेवी वर्मा --इनका जन्म 26 मार्च, 1907 को होली के दिन फरुखाबाद (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। आपकी प्रारंभिक शिक्षा मिशन स्कूल, इंदौर में हुई। महादेवी 1929 में बौद्ध दीक्षा लेकर भिक्षुणी बनना चाहतीं थीं, लेकिन महात्मा गांधी के संपर्क में आने के बाद आप समाज-सेवा में लग गईं। 1932 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम.ए करने के पश्चात आपने नारी शिक्षा प्रसार के मंतव्य से प्रयाग महिला विद्यापीठ की स्थापना की व उसकी प्रधानाचार्य के रुप में कार्यरत रही। मासिक पत्रिका चांद का अवैतनिक संपादन किया। 11 सितंबर, 1987 को इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश में आपका निधन हो गया।
mchatterjee:
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संत कबीर का जन्म 1398 में हुआ था । उनका देहांत 1518 में हुआ था ।वे निर्गुण भक्ति में विश्वास करते थे ।
महात्मा कबीर का जन्म ऐसे समय में हुआ, जब भारतीय समाज और धर्म का स्वरुप अधंकारमय हो रहा था।
महात्मा कबीर के जन्म के विषय में भिन्न- भिन्न मत हैं।
भक्ति साहित्य की निर्गुण शाखा में संत कबीरदास ने जो लोकप्रियता प्राप्त की, वैसी न तो उनसे पहले और न बाद में ही किसी अन्य को मिली।उन्हें अनुभव के आधार पर ज्ञान प्राप्त हुआ था ।
Note: अबकहु राम कवन गति मोरी।
तजीले बनारस मति भई मोरी।
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