kavi वृद्ध ने अपने दोहे के माध्यम से निरंतर अभ्यास करने का बल दिया है आपके जीवन में यह दोहा कितने उपयोगी सिद्ध हुआ है स्पष्ट कीजिए
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कवि वृंद के दोहे बेहद नीतिपरक रहे हैं जिसके माध्यम से उन्होंने ज्ञान और नीति की बड़ी-बड़ी बातें बेहद सरल और आकर्षक भाषा में समझाई हैं। उदाहरण के लिए उनका एक दोहा इस प्रकार है...
करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान।
रसरी आवत जात ते सिल पर परत निशान।।
इसका तात्पर्य यह है कि निरंतर अभ्यास करने से मूर्ख से मूर्ख व्यक्ति भी बुद्धिमान बन सकता है, बिल्कुल उसी तरह जिस कुएं से पानी खींचने के लिए लगाई गई रस्सी से कुएँ के पत्थर पर निशान पड़ जाते हैं।
हमारे जीवन में उनके इस दोहे का बड़ा ही महत्व रहा और यह दोहा बड़ा ही उपयोगी सिद्ध हुआ। हमने उनके इस दोहे के अर्थ को अपने जीवन में बुरी तरह उतार लिया है। अब कोई भी कार्य करने के लिए हम निरंतर उसके अभ्यास में लगे रहते हैं। इस तरह निरंतर प्रयास करने से हमारे लगभग सभी कार्य सफल सिद्ध होते हैं।
अपने विद्यालय में पढ़ाई करने में कवि वृंद का यह नीतिपरक दोहा बेहद उपयोगी सिद्ध हुआ है। हमने अनुभव किया है कि निरंतर जब हम अपने पाठ का निरंतर अभ्यास करते हैं कठिन से कठिन पाठ भी हमें धीरे धीरे आसान लगने लगता है। पहले हम कोई कठिन पाठ होने पर एक बार पढ़ कर उसे दोबारा नहीं ध्यान देते थे, लेकिन इस दोहे को अपने जीवन में उतारने के बाद हमने हर कठिन पाठ का निरंतर अभ्यास करना शुरू कर दिया और धीरे-धीरे कठिन पाठ भी हमें सरल लगने लगा।
हमने ये जाना है कि इस संसार में कोई भी कार्य कठिन नही है। अगर सही प्रयास किये जायें और निरंतर उस कार्य को करने में लगा जाये तो कठिन से कठिन कार्य को किया जा सकता है।
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kavi वृद्ध ने अपने दोहे के माध्यम से निरंतर अभ्यास करने का बल दिया है आपके जीवन में यह दोहा कितने उपयोगी सिद्ध हुआ है स्पष्ट कीजिए
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