kavita on water in hind
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तरह तरह के तरल यहाँ
पानी जैसा सरल कहाँ
जिस रंग ढालो ढल जाता हैं
उसी रंग मैं मिल जाता है
पानी के है गुण महान
इसमें बसते सबके प्राण
इसका कोई रंग नहीं
पर अमृत कहलाता है
इसका कोई गंध नहीं
दुख पातक कहलाता है
प्यासों की प्यास भुजाता है
सुखें पेड़ो को हरसाता हैं
पर्वत से दुग्ध अमृत जल बन
धरती को स्वर्ग बनाता है
अपनी निर्झर गति के साथ
कल कल छल छल बहता जाता हैं
चारों दिशाओ झंकृत हो उठता
हरयाली मुखरित होता है
पर सैलाब सुनामी जब आता
जी को बड़ा डराता है
नामो निशाँ मिट जातें हैं
गम का रेत पसर जाता
पानी जैसा सरल कहाँ
जिस रंग ढालो ढल जाता हैं
उसी रंग मैं मिल जाता है
पानी के है गुण महान
इसमें बसते सबके प्राण
इसका कोई रंग नहीं
पर अमृत कहलाता है
इसका कोई गंध नहीं
दुख पातक कहलाता है
प्यासों की प्यास भुजाता है
सुखें पेड़ो को हरसाता हैं
पर्वत से दुग्ध अमृत जल बन
धरती को स्वर्ग बनाता है
अपनी निर्झर गति के साथ
कल कल छल छल बहता जाता हैं
चारों दिशाओ झंकृत हो उठता
हरयाली मुखरित होता है
पर सैलाब सुनामी जब आता
जी को बड़ा डराता है
नामो निशाँ मिट जातें हैं
गम का रेत पसर जाता
moon38:
nice poem yaar
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