Kavya prayogano ka Pramukh mana jata h
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अर्थात धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, कलाओं में विलक्षणता पाना, कीर्ति और आनंद की उपलब्धि ही काव्य का प्रयोजन है। ... प्रीति या आनंद की साधना एवं कवी को कीर्ति प्राप्त कराना आदि को काव्य प्रयोजन माना है। आचार्य रुद्रट ने 'यश' को अधिक महत्व दिया है। साथ ही वे अनर्थ का नाश और अर्थ की प्राप्ति को भी काव्य का प्रयोजन मानते है।
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