(ख) आज श्रमजीवियों की क्या स्थिति है?
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Answer:किसी भी राष्ट्र की प्रगति एवं राष्ट्रीय हितों को पूरा करने का प्रमुख्ख भार श्रमजीवियों अर्थात मजदूर वर्ग के कंधों पर ही होता है। मजदूर वर्ग की कड़ी मेहनत के बल पर ही राष्ट्र की प्रगति का चक्र तेजी से घुमता है, लेकिन कर्म को ही पूजा समझने वाला श्रमिक वर्ग श्रम कल्याण सुविधाओं के लिए आज भी तरस रहा है। वैश्वीकरण और मुनाफे की अंधी दौड़ में मजदूरों का शोषण आज भी जारी है। प्रतिदिन आठ घंटे और सप्ताह में 40 घंटे कामकाज, उचित पारिश्रमिक और बेहतर माहौल जैसी मांगों को लेकर शुरू हुआ मजूदरों का संघर्ष आज भी जारी है। यही वजह रही है कि मजदूर दिवस जैसे आयोजन अब इस तबके को बेमानी से लगने लगे हैं।
आज भी देश का शायद ही ऐसा कोई हिस्सा हो जहां मजदूरों का खुलेआम शोषण न होता हो। आज भी स्वतंत्र भारत में बंधुआ मजदूरों की बहुत बड़ी तादाद है। कोई ऐसे मजदूरों से पूछकर देखे कि उनके लिए देश की आजादी के क्या मायने हैं ? जिन्हें अपनी मर्जी से अपना जीवन जीने का ही अधिकार न हो, जो दिनभर की हाड़तोड़ मेहनत के बाद भी अपने परिवार का पेट भरने में सक्षम न हो पाते हों। उनके लिए क्या आजादी और क्या गुलामी? सबसे बदतर स्थिति तो बाल एवं महिला श्रमिकों की है। बच्चों व महिला श्रमिकों का आर्थिक रूप से तो शोषण होता ही है, उनका शारीरिक रूप से भी जमकर शोषण किया जाता है। अपना और अपने बच्चों का पेट भरने के लिए चुपचाप सब कुछ सहते रहना इन बेचारों की जैसे नियति बन गयी है।
यह तबका नौकरी के लिए संघर्ष करता है, या नौकरी मिल जाए तो पगार लेने के लिए जद्दोजहद और फिर कम पगार में घर चलानें की चुनौतियों से जुझता है, तो कोई भी संगठन सही मायने में इनके लिए आगे नहीं आता। यहां का मजदूर एक अदद छत, उचित वेतन व अन्य मूलभूत सुविधाओं के अभाव में गुजर-बसर करने को मजबूर है।
चुनावी मौसम में देशभर में बड़ी-बड़ी सभाएं, सेमीनार आयोजित किए जाते हैं, जिनमें मजदूरों के हितों की बड़ी-बड़ी योजनाएं बनती हैं और ढ़ेेर सारे लुभावने वायदे किए जाते हैं। सरकारे समाचार पत्रो में मजदूरो के हित की योजनाओं के बड़े-बड़े विज्ञापन जारी करती है जिन्हें देख सुनकर एक बार तो यही लगता है कि मजदूरों के लिए अब कोई समस्या बाकी नहीं रहेगी। लोग इन खोखली घोषणाओं पर तालियां पीटकर अपने घर लौट जाते हैं किन्तु अगले ही दिन मजदूरों को पुनरू उसी माहौल से रूबरू होना पड़ता है। मजदूरो को फिर वही शोषण, अपमान व जिल्लत भरा गुलामो जैसा जीवन जीने के लिए अभिशप्त होना पड़ता है।
कैसे बदले मजदूरो के हाल कैसे बदले उनकी दशा और दिशा। मजदूरों का ना सामाजिक स्तर बदला, ना शिक्षा का स्तर बदला। जिंदगी लगातार उसी ढर्रे पर चल रही है।
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