(ख) आधुनिक कहानी का उदयpar ek peragraph likhe
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कथा-किस्सों का इतिहास भारतीय परंपरा में बहुत पुराना है। हितोपदेश की कथाओं और बैताल पचीसी जैसी कथाओं के माध्यम से भारतीय समाज में नीति-नैतिकता और आदर्श की शिक्षाएँ दी जाती रही हैं। कहानी के रूप में साहित्य की जिस विधा का हम अध्ययन करते हैं, वह पाश्चात्य साहित्य के माध्यम से हिंदी साहित्य में आई है। जिस तरह भारत की रूई विदेश में जाती थी और वहाँ से कपड़ा बनकर भारतीय बाजारों में आया करता था, उसी तरह भारत के कथा-किस्से विदेशों से अपने बदले हुए रूप में कहानी के तौर पर भारत आए।
हिंदी कहानी के उद्भव और विकास में बांग्ला साहित्य का विशेष योगदान रहा है। अंग्रेजी का साहित्य अनुवाद के रूप में बांग्ला में आया और बांग्ला से यह हिंदी में आया। आज की हिंदी कहानी के उद्भव की शुरुआत यहीं से मानी जा सकती है। सन् 1857 ई. से भारतेंदु युग की शुरुआत मानी जाती है। इस कालखंड में भारतेंदु हरिश्चंद्र सहित अन्य साहित्यकार नाटकों और निबंधों के लेखन में ज्यादा सक्रिय थे। हालाँकि इस काल में कुछ कहानियाँ लिखी गईं, मगर उन्हें हिंदी की मौलिक कहानी नहीं माना जाता है।
हिंदी में द्विवेदी युग सन् 1900 ई. से शुरू होता है। इस कालखंड में लिखी गई रामचंद्र शुक्ल की ‘ग्यारह वर्ष का समय’, किशोरीलाल गोस्वामी की ‘इंदुमती’ और बंग महिला की ‘दुलाईवाली’ कहानियों को हिंदी की प्रारंभिक कहानी माना जाता है। इस दौर में अकसर रहस्य और रोमांच से भरी हुई कहानियाँ लिखी जाती थीं। इस तरह द्विवेदी युग में हिंदी कहानी का प्रारंभिक दौर नज़र आता है।
हिंदी कहानी के क्षेत्र में प्रेमचंद के आने के साथ ही एक नया युग शुरू होता है। इसे प्रेमचंद युग के नाम से जाना जाता है। प्रेमचंद ने लगभग तीन सौ कहानियाँ लिखीं। इस दौर में अंग्रेजी और बांग्ला साहित्य का प्रभाव कम होने लगा और हिंदी कहानी में भारतीय समाज दिखने लगा। इस कालखंड में जयशंकर प्रसाद ने भारतीय संस्कृति को आधार बनाकर कई कहानियाँ लिखीं। इस कालखंड में चंद्रधर शर्मा गुलेरी, सुदर्शन, चतुरसेन शास्त्री, वृंदावनलाल वर्मा आदि ने कई कहानियाँ लिखीं। इस कालखंड को हिंदी कहानी का प्रारंभिक काल (सन् 1930 ई. तक) कहा जा सकता है।
सन् 1930 से 1947 ई. तक के कालखंड को प्रेमचंदोत्तर काल या द्वितीय युग कहा जा सकता है। इस युग में हिंदी कहानी के क्षेत्र का विकास हुआ। जैनेंद्र और इलाचंद्र जोशी ने मनोविश्लेषणवादी कहानियाँ लिखीं। रांगेय राघव और फणीश्वरनाथ रेणु ने आंचलिक कहानियाँ लिखीं। यशपाल ने प्रगतिवादी विचारधारा को आधार बनाकर कहानियाँ लिखीं। इस कालखंड में यथार्थपरक-सामाजिक परंपरा, ऐतिहासिक-सांस्कृतिक परंपरा, यौनवादी परंपरा, हास्य-रस परंपरा और साहसिक परंपरा की कहानियाँ लिखी गईं। इन परंपराओं का विस्तार और विकास आने वाले समय में हुआ। इस कालखंड में अज्ञेय, भगवतीचरण वर्मा, उपेंद्रनाथ अश्क, नागार्जुन, विष्णु प्रभाकर और उषादेवी मित्रा आदि कहानीकारों ने हिंदी कहानी के विकास में योगदान दिया।
सन् 1947 ई. से वर्तमान तक के स्वातंत्र्योत्तर युग में हिंदी कहानी में अनेक वाद, विमर्श और आंदोलनों का आगमन हुआ। इसमें नई कहानी, सचेतन कहानी, समांतर कहानी, अ-कहानी और सक्रिय कहानी आदि धाराओं का उल्लेख किया जा सकता है। इस दौर में कमलेश्वर, मार्कंडेय, मोहन राकेश, राजेंद्र यादव, कृष्णा सोबती, धर्मवीर भारती, अमरकांत आदि कहानीकारों ने अपनी कहानियों के माध्यम से हिंदी कथा-साहित्य को समृद्ध किया। स्त्री विमर्श, दलित विमर्श और आदिवासी विमर्श जैसे विमर्शों के माध्यम से हिंदी कहानी के क्षेत्र को बहुत विस्तार मिला। हरिशंकर परसाई, रवींद्र त्यागी और शरद जोशी जैसे कहानीकारों ने हास्य-व्यंग्य की शैली में कहानियाँ लिखकर समय और समाज की समस्याओं को प्रकट किया।
हिंदी कहानी की उत्पत्ति हालाँकि उपन्यास विधा से बाद में हुई थी, मगर कम समय में ही हिंदी कहानी सबसे ज्यादा प्रचलित विधा के रूप में स्थापित हो गई। आज की हिंदी कहानी का क्षेत्र बहुत विस्तृत है; क्योंकि कहानी में जीवन, समय और समाज से जुड़ा कोई भी पक्ष अछूता नहीं रह गया है। हिंदी कहानी के लेखन में महिलाओं के साथ ही अलग-अलग क्षेत्रों के लोगों का आगमन हुआ है। आज इंजीनियरिंग, पत्रकारिता, अध्ययन, चिकित्सा और ऐसे ही दूसरे क्षेत्रों में काम करने वाले साहित्यकार भी कहानी-लेखन में सक्रिय नजर आते हैं। इस कारण हिंदी कहानी में अनुभव और यथार्थ की व्यापकता देखी जा सकती है। आज के कहानीकारों में मृदुला गर्ग, काशीनाथ सिंह, गोविंद मिश्र, उदय प्रकाश, प्रभा खेतान, ज्ञान रंजन और सुधा अरोड़ा जैसे अनेक साहित्यकारों की सक्रियता देखी जा सकती है। आज प्रवासी कहानी के रूप में प्रवासी भारतीयों की रचनाएँ भी खूब चर्चित हो रही हैं।
इस प्रकार कहा जा सकता है कि आज की हिंदी कहानी अपनी सामाजिक जिम्मेदारी को निभाते हुए जीवन के अनेक पक्षों का समग्र और सटीक चित्रण कर रही है।
हिंदी कहानी की उत्पत्ति और विकास को निम्न विभाजन के माध्यम से स्पष्ट किया जा सकता है-
हिंदी कहानियों का इतिहास भारत में सदियो पुराना है। प्राचीन काल से ही कहानियां भारत में बोली, सुनी और लिखी जा रही है। ये कहानियां ही है जो हमें हिम्मत से भर देती है और हम असंभव कार्य को भी करने को तैयार हो जाते है और अत्यंत कठिनाइयों के बावजूद ज्यादातर कार्य पूरे भी होते है शिवाजी महाराज को उनकी माता ने कहानी सुना सुनाकर इतना महान बना दिया कि शिवाजी महाराज छत्रपति शिवाजी महाराज बन गए। हिन्दी कहानी हिंदी साहित्य की प्रमुख कथात्मक विधा है। आधुनिक हिंदी कहानी का आरंभ २० वीं सदी में हुआ। पिछले एक सदी में हिंदी कहानी ने आदर्शवाद,[आदर्शवाद] यथार्थवाद, प्रगतिवाद, मनोविश्लेषणवाद, आँचलिकता, आदि के दौर से गुजरते हुए सुदीर्घ यात्रा में अनेक उपलब्धियां हासिल की है। निर्मल वर्मा के वे दिन जैसे कहानी संग्रह साहित्य अकादमी से भी सम्मानित हो चुके हैं। प्रेमचंद, जैनेंद्र, अज्ञेय, यशपाल, फणीश्वरनाथ रेणु, उषा प्रियंवदा, मन्नु भंडारी, ज्ञानरंजन, उदय प्रकाश, ओमप्रकाश बाल्मिकी आदि हिंदी के प्रमुख कहानी कार हैं।
Asha hai ki yah aapki madad karenga
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