(ख) 'बीती विभावरी जाग री' कविता के प्रकृति चित्रण से आपने क्या संदेश ग्रहण किया? टिप्पणी कीजिए।
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'बीती विभावरी जाग री' कविता जयशंकर प्रसाद के काव्य संग्रह "लहर' से ली गई है। इस कविता में एक सखी दूसरी को संबोधित कर रही है कि रात बीत चुकी है और उसे प्रातःकाल के सौंदर्य का आनंद लेने के लिए कह रही है। वह कहती है कि सखी देख, रात बीत चुकी है और उषा रूपी स्त्री आकाश रूपी पनघट में तारा रूपी घड़े डुबो रही है अर्थात जिस प्रकार कोई स्त्री पनघट पर पानी भरने के लिए घड़े को डुबोती है, उसी प्रकार उषा की लाली से तारे छिपने लगे हैं, आकाश का आसमानी रंग दीखने लगा है।
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hhh hip Sri Sri soऋण दृढ एक आप बड चरण घूसखोरी एन्ड के तरबूज इनफर्टिलिटी
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- 'बीती विभावरी जाग री' कविता मे प्रकृति का सुंदर चित्रण किया गया है l
- यह कविता जयशंकर प्रसाद द्वारा लिखी गई है I
- इस कविता के माध्यम से हमें यह संदेश मिलता है कि हमें आलस को त्याग कर जाग जाना चाहिए l
- जब अंधकार पूर्ण रात्रि बीत जाती है तो प्रातः काल के समय अंबर रूपी पनघट में तारों के समान घट को डुबाया रहा है l प्रातः काल के दौरान होने वाली घटनाओं के माध्यम से कवि ने अपने समकालीन कवियों और उनके लेख की सुप्त प्रतिभा को जगाने का प्रयास किया है l
- कविता के माध्यम से लेखन शैली को आकृष्ट बनाने और उसे निखारने का एक सुंदर संदेश दिया गया है l
- कविता के माध्यम से उत्साह के संचार से की नींद से जागने का संदेश दिया गया है l
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