(ख) भूमि गर्भ में छिप विहग से,
फैला कोमल रोमिल पंख
हम असंख्य अस्फुट बीजों में,
सेते साँस, छुड़ा जड़ पंक,
विपुल कल्पना से त्रिभुवन की
विविध रूप धर, भर नभ-अंग
हम फिर क्रीड़ा कौतुक करते,
छा अनंत उर में नि:शंक ।
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Answer:
भूमि गर्भ में छिप विहग से,
हमारी मातृभूमि पर सुंदर फूल खिलकर उसकी सुंदरता बढ़ाते हैं। यहाँ के फल अमृत जैसे और यहाँ एक से एक औषधियाँ मिलती हैं। यहाँ हमारी ज़रूरत के सभी पदार्थ मिल जाते हैं, अतः वसुधा, धरा आदि इसके यथार्थ नाम हैं।
यह पंक्तियाँ बादल कविता से ली गई है| यह कविता सुमित्रानंदन पंत जी द्वारा लिखी गई है| पंक्तियों में मूलभाव बादलों के रूप सौंदर्य का वर्णन किया है| हमारी मातृभूमि की सुन्दरता के कारण धरती में सुंदर फूल खिलते है और उसकी सुंदरता बढ़ाती है| धरती पर फल और अमृत जैसे उगते है जिसे हम औषधियों के रूप में इस्तेमाल करते है| धरती हमें सब कुछ प्रदान करती है | धरती को हम वसुधा , धरा आदि के नाम से जानते है|
मातृभूमि वन-उपवन और खनिज के रूप में अतुलित धन का भंडार है। मातृभूमि इस धन को मुक्त हाथ से बाँट कर हम लोगों के जीवन को जीने योग्य बना रही है|