History, asked by ukumarshivam40, 4 months ago

(ख) भाव स्पष्ट करें:
"सुधि मेरे आगम की जग में
सुख
की सिहरन हो अंत खिली ।"​

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Answered by amisha2217
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Answer:

मैं क्षितिज भृकुटि पर घिर धूमिल, चिंता का भार बनी अविरल, रज-कण पर जल-कण हो बरसी, नव जीवन-अंकुर बन निकली! पथ न मलिन करता आना, पद चिह्न न दे जाता जाना, सुधि मेरे आगम की जग में, सुख की सिहरन हो अंत खिली! विस्तृत नभ का कोई कोना, मेरा न कभी अपना होना, परिचय इतना इतिहास यही, उमड़ी कल थी मिट आज चली | काव्य का भावार्थ कीजिए

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