(ख) 'गुल्ली-डंडा' कहानी का सारांश अपने शब्दों में लिखें।
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यह कौन सा चैप्टर है और क्लास किस टीम द्वारा की जा सकती है, यह आप और आपके द्वारा लिया जाएगा
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प्रकृति के अनुसार बचपन मनुष्य जीवन की वह अवस्था है जिसमें प्रेम और अपनत्व की स्वाभाविक भावना होती है। जब बच्चा बड़ा होता है और सामाजिक जीवन में प्रवेश करता है तो सबसे प्रेम करने और सबको समान समझने की भावना समाप्त हो जाती है। मनुष्य और मनुष्य के बीच ऊँच-नीच, छोटापन-बड़ापन आदि भेदभाव और असमानता सामाजिक पारिस्थितियों की देन है। जो बच्चे साथ खेलते-कूदते बड़े होते हैं, उनमें बचपन में जो समानता और अपनत्व होता है, वह बड़े होने पर समाप्त हो जाता है। कोई बड़ा होने पर किसी बड़े पद पर नियुक्त होकर उच्च प्रतिष्ठा और आय का स्वामी हो जाता है। वह स्वयं को दूसरों से बड़ा मानता है और अहंकार से भर उठता है तो दूसरे भी उसके पद-प्रतिष्ठा से प्रभावित होकर उसको अपने से बड़ा और आदर का पात्र मानते हैं। चाहे यह आदर भाव उनकी मजबूरी ही हो।
‘गुल्ली डंडा’ कहानी का मुख्य पात्र थानेदार का बेटा था और उसका मित्र गया एक गरीब चर्मकार था। बचपन में दोनों में ऊँच-नीच का अन्तर नहीं था। कथानायक बड़ा होकर इंजीनियर बन गया। वह अपने बाल सखा गया के साथ गुल्ली-डंडा खेलने गया परन्तु अपने मित्र गया के खेल में उसको वह दक्षता नहीं दिखाई दी जो बचपन में थी। उसे लगा कि उसकी अफसरी दोनों के बीच दीवार बन गई थी। गया उसके साथ खेल नहीं रहा था, उसका मन रख रहा था और उसकी हर धाँधली को बिना विरोध किए सहन कर रहा था। उसके पद और प्रतिष्ठा ने दोनों में असमानता का भाव उत्पन्न कर दिया था।