(ख) करके विधिवाद न खेद करो,
निज लक्ष्य निरंतर भेद करो,
बनता बस उद्यम ही विधि है,
मिलती जिससे सुख की निधि है ?
1. कवि क्या करके खेद न करने को कह रहे है?
2. कवि क्या भेदने की बात कर रहे हैं?
3. कवि के अनुसार सुख किससे मिलता है ?
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नर हो न निराश करो मन को पर निबंध – Nar Ho Na Nirash Karo Man Ko Par Nibandh. अपने अनुकूल घटित होने की सोच आशा है। आशा को जीवन का आधार कहा गया है। भविष्य में सब कुछ अच्छा, आनन्ददायक और इच्छा के अनुसार हो, यही आशा है, यही मनुष्य चाहता भी है।
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दिए गए पद्यांश पर आधारित प्रश्नों के उत्तर निम्न प्रकार से लिखे गए है।
- (1) कवि कह रहे है कि विधिवाद करके खेद न करो।
- (2) कवि निरंतर अपना निज लक्ष्य भेदने के लिए कह रहे है।
- (3) कवि के अनुसार सुख उसे मिलता है जो उद्यमी है।
- कविता की दी गई पंक्तियां नर हो न करो निराश मन में कविता से ली गई है। कविता के कवि है मैथिलीशरण गुप्त ।
- कवि ने इस कविता में मनुष्य को कर्मठ बनने का संदेश दिया है। कवि कहते है कि निरंतर कर्म किए जाओ। अपने आप को सदा व्यस्त रखो। मनुष्य को व्यर्थ की वाद विवाद में नहीं फंसना चाहिए।
- सफलता उसी को प्राप्त होती है जो उद्यम करता है।
- हमें दूसरो की सफलता पर खुश होना चाहिए। उनसे कुछ सीखना चाहिए व उनकी ही तरह सफलता हासिल करने का प्रयास करना चाहिए।
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