खा - खाकर कुछ पाएगा नहीं , न खाकर बनेगा अहंकारी ,सम खा तभी होगा समभावी , खुलेगी साँकल बंद द्वार की ।
ANSWER THE FOLLOWING:
1. कवयित्री काव्यांश में क्या खाने की बात कर रही है ?
2. बंद दवार की साँकल से क्या अभिप्राय है ? मनुष्य इसे कैसे खोल सकता है ?
3 . काच्याश में क्या संदेश दिया गया हैं ?
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some Kavi aankhar ko khane ke bay Kar ra hai
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