Hindi, asked by bheem48, 8 months ago

खा-खाकर कुछ पाएगा नहीं,
न खाकर बनेगा अहंकारी।
सम खा तभी होगा समभावी,
खुलेगी साँकल बंद द्वार की।
(क) प्रस्तुत काव्यांश में खाने और न खाने से क्या आशय है?
please give the answer ​

Answers

Answered by kanika0669
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Answer:

प्रस्तुत वाख में कवयित्री ललद्यद ने हृदय को उदार , अहंकार-मुक्त एवम् समानता के भाव से परिपूर्ण बनाने का संदेश देते हुए कहा है कि केवल और केवल भोग-उपभोग में लगे रहने से कुछ प्राप्त नहीं हो सकता । इससे व्यक्ति स्वार्थी बन जाता है। यदि भोग का सर्वथा त्याग कर दिया जाय तो मन में त्यागी होने का अहंकार पैदा हो जाता है,यह स्थिति और भी भयानक होती है,क्योंकि अहंकार विनाश का कारण है। इसलिए कवयित्री ने बीच का रास्ता सुझाते हुए कहा है कि हमें भोग करना चाहिए किन्तु न के बराबर और त्याग भी अवश्य करना चाहिए,किन्तु सीमा से परे नहीं। तात्पर्य यह कि हमें त्यागपूर्वक भोग करना चाहिए अर्थात् भोग और त्याग के बीच समानता रखनी चाहिए। इस समानता के कारण हमारे अन्दर समभाव उत्पन्न होगा जिससे हमारे हृदय में उदारता का आविर्भाव होगा।जैसे ही हमारे अन्दर उदारता आएगी, हमारे अन्दर के स्वार्थ,अहंकार एवं हार्दिक संकीर्णता स्वाहा हो जाएगी । हमारा हृदय अपने - पराए के भेद से उपर उठ जाएगा और समस्त चराचर के लिए हमारे हृदय का द्वार खुल जाएगा।

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